Tuesday 13 February 2018

८) 'सफ़र संवेदनाओं का' -साझा-लघुकथा-संग्रह

 'सफ़र संवेदनाओं का' साझा-लघुकथा-संग्रह - वनिका पब्लिकेशन
सम्पादक द्वय -डॉ. जितेन्द्र जीतू जी और डॉ. नीरज सुधांशु जी |
विमोचन- दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में जनवरी २०१८ में हुआ |
प्रकाशित चार लघुकथाएँ .--
१..पछतावा
२ -परिपाटी
३--उपाय
४--अमानत
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लघुकथा विषय में महत्वपूर्ण बात ..


-तोहफ़ा के साथ यही चारों कथाएँ लघुकथा.कॉम वेबसाइट के संचयन में  भी संचित हैं ....इस लिंक पर ..
-तोहफ़ा.
.पछतावा
-परिपाटी
--उपाय
--अमानत
http://laghukatha.com/%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95…/
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१..
पछतावा इस लिंक पर  ....
http://kavitabhawana.blogspot.in/2015/05/blog-post.html


 २- परिपाटी-
अपनी बहन की शादी में खींची गई उस अनजान लड़की की तस्वीर को नीलेश जब भी निहारता, तो सारा दृश्य आँखों के सामने यूँ आ खड़ा होता, जैसे दो साल पहले की नहीं, कुछ पल पहले की ही बात हो।
वह भयभीत-सी इधर-उधर देखती फिर सबकी नजर बचाकर चूड़ियों पर उँगलियाँ फेरकर खनका देती। चूड़ियों की खनक सुनकर बच्चियों-सी मुस्कुराती फिर फौरन सहमकर गम्भीरता ओढ़ लेती। सोचते-सोचते नीलेश मुस्कुरा दिया।
वहीं से गुजरती भाभी ने उसे यूँ एकान्त में मुस्कराते देखा तो पीछे पड़ गईं, ‘‘किसकी तस्वीर है? कौन है यह?’’ उनके लाख कुरेदने पर नीलेश शर्माते हुए इतना ही बोल पाया, ‘‘भाभी हो सके तो इसे खोज लाओ बस, एहसान होगा आपका!’’
फिर क्या था! भाभी ने लड़की की तस्वीर ले ली और उसे ढूँढ़ना अपना सबसे अहम टारगेट बना लिया। आज जैसे ही नीलेश घर वापस आया, भाभी ने उस लड़की की तस्वीर उसे वापस थमा दी, और उससे आँखें चुराती हुई बुदबुदाईं, “भूल जा इसे। इस खिलखिलाते चेहरे के पीछे सदा उदासी बिखरी रहती है, नीलेश!’’
‘‘क्या हुआ भाभी, ऐसा क्यों कह रही हैं आप!!’’ मुकेश ने पूछा तो आसपास घर के अन्य सदस्य भी आ गए।
‘‘यह लड़की मेरे बुआ के गाँव की है। उसकी शादी हो चुकी है, पर अफसोस उसका पति सियाचिन बॉर्डर पर शहीद हो चुका है।’’ भाभी ने बताया। सबने देखा कि नीलेश भाभी के आगे हाथ जोड़कर,गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘भाभी इस लड़की के साथ मैं अपनी मुस्कुराहट साझा करना चाहता हूँ। प्लीज कुछ करिए आप!’’
नीलेश की यह बात सुनते ही परिजन सकते में आ गए।
‘‘मेरी सात पुश्तों में किसी ने विधवा से शादी करने का सोचा तक नहीं, फिर भले वह विधुर ही क्यों न रहा हो! तू तो अभी कुँवारा ही है! अबे! तू विधवा को घर लाएगा..? कुल की परिपाटी तोड़ेगा.., नालायक?’’ पिता जी फौरन कड़कते हुए नीलेश को मारने दौड़े। बीच-बचाव में माँ, पिता को शान्त कराने के चक्कर में अपना सिर पकड़कर फर्श पर ही बैठ गईं।
पिता जी अभी शान्त भी न हुए थे कि अब बड़ा भाई शुरू हो गया, ‘‘अरे छोटे! तेरे लिए छोकरियों की लाइन लगा दूँगा। इसे तो तू भूल ही जा।’’
विरोध के चौतरफा बवंडर के बावजूद नीलेश अडिग रहा। उसने रंगबिरंगी चूड़ियों में समाई उस लड़की की मुस्कान वापस लौटाने की जो ठान ली थी। इस हो-हल्ले में माँ ने जब अपने दुलारे नीलेश को अकेला पड़ता पाया, तो उन्होंने नीलेश की कलाई पकड़ी ओैर अपने कमरे की तरफ उसे साथ में लेकर बढ़ चलीं ओर धीमी आवाज में बोलीं, ‘‘रंगबिरंगी नहीं, मूरख! लाल-लाल चूड़ियाँ लेना! हमारे यहाँ सुहागनें लाल चूड़ियाँ ही पहनती हैं। कुल की परिपाटी तोड़ेगा क्या नालायक!’’
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३--उपाय
माँ मना करती रही कि घर में कैक्टस नहीं लगाया जाता। किन्तु सुशील बात कब सुनता माँ की। न जाने कितने जतन से दुर्लभ प्रजाति के कैक्टस के पौधे लगाए थे। आज अचानक उसे बरामदे में लगे कैक्टस को काटते देख रामलाल बोले, ‘‘अब क्यों काटकर फेंक रहा है? तू तो कहता था कि इन कैक्टस में सुंदर फूल उगते हैं? वो खूबसूरत फूल मैं भी देखना चाहता था।’’
‘‘हाँ बाबूजी, कहता था, पर फूल आने में समय लगता है, परन्तु काँटे साथ-साथ ही रहते। आज नष्ट कर दूँगा इनको!’’
‘‘मगर क्यों बेटा?’’
‘‘क्योंकि बाबूजी, आपके पोते को इन कैक्टस के काँटों से चोट पहुँची है।’’
‘‘ओह, तब तो समाप्त ही कर दो ! पर बेटा इसने अंदर तक जड़ पकड़ ली है! ऊपर से काटने से कोई फायदा नहीं!’’
‘‘तो फिर क्या करूँ?’’
‘‘इसके लिए पूरी की पूरी मिट्टी बदलनी पड़ेगी। और तो और, इन्हें जहाँ कहीं भी फेंकोगे ये वहीं जड़ें जमा लेंगे।’
‘‘मतलब इनसे छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं?’’
‘‘है क्यों नहीं…’’ कहकर कहीं खो से गए।
‘‘बताइए बाबूजी, चुप क्यों हो गए?’’
‘‘तू अपनी दस बारह साल पीछे की ज़िन्दगी याद कर!’’
माँ के मन में उसने न जाने कितनी बार काँटे चुभोए थे। अपनी जवानी के दिनों की बेहूदी हरकतों को यादकर शर्मिंदा हुआ। माँ भी तो शायद चाहती थी कि ये काँटे उसके बच्चों को न चुभें।
‘‘मैंने तुझे संस्कार की धूप में तपाया, तू इन्हें सूरज की तेज़ धूप में तपा दे।’’ उसकी ओर गर्व से देख पिता मुस्कुराकर बोले।
फिर वह तेजी से कैक्टस की जड़ें खोदने लगा।
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इसी "पैंतरा"कथा का बदला हुआ स्वरूप है "उपाय" कथा ..सही करते करते रूप रंग बदल गया ..
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अमानत इस लिंक पर
http://kavitabhawana.blogspot.in/2017/01/blog-post_57.html

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