Saturday 1 December 2012

++त्यौहार क्यों मनाते हो ++

त्यौहार तो अब हम क्या कैसे मनाये
सब दिन तो सूखी नमक रोटी खा
ये|

फिर किसी तरह त्यौहार के खातिर पैसा जुटा
ये
थैला ले जरा बाजार हो अपना थैला भर आये|

सोचे इतने में सब कुछ खरीद होगें खुशहाल
घर वालों के ख़ुशी से होगें सुर्ख गाल लाल |

दाम पूछते ही सामानों के हम बैठे मन मार
 भारी-भरकम 
दाम अंटी पैसे थे बस चार |

घूमते ही रहे धन मुताबिक ना मिला माल
तब समझे इस मंहगाई में हम तो हैं कंगाल|

बस एक-दो समान मूर्ति सहित घर ले आये
पूजा पर बैठ प्रभु को अपना दुखड़ा सुना
ये|

वह बोले इतने में हम क्या दे तुमको मूरख
तुम तो अच्छे हो जो नहीं पा रहे हो दुःख|

उनसे पूछो जो इस मंहगाई में भूखो रहते
त्यौहार को छोड़ो रोटी को भी हैं तरसते|

दो जून की जो भी सूखी-रुखी पाते हो
उसी में खुश रहो त्यौहार क्यों मनाते हो|...सविता मिश्रा

2 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर ............

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

bahut bahut abhar aapka