Saturday, 30 March 2013

==कल्पना होती हैं मन में ==



नफ़रत की अविरल धारा में
प्यार का पानी बरसे
कुछ ऐसी ही कल्पना होती है
मन में ...
पर नफ़रत सदा प्यार को तरसे|
नफ़रत हो ना कभी
सदा प्यार ही प्यार रहें
पर होगा क्या ऐसा कभी
जब तक घृणा किसी से रहें |

प्यार का बादल घिर जाएँ
घृणा की बदबू तक ना आएँ
नफ़रत बिजली की तरह
मिट्टी में मिल जाएँ |
बस प्यार भरी ...
सावन की घटा छाएँ
प्यार का संगम दिखे
हर दिल में ,
नफरत के पोखर सुख जाएँ
कुछ ऐसी ही कल्पना
होती है मन में|| 2/1990
||सविता मिश्रा ||

1 comment:

Anonymous said...

SUNDAR .....