Sunday 13 October 2013

क्या रावण को सच में पापी की संज्ञा दे पुतला दहन किया जाना चाहिए ?

यह सिर्फ हमारे विचार है (ek srtri ki najr se )जरुरी नहीं सभी सहमत ही हों, यदि किसी को आपत्ति हैं तो, हमें खेद है ............

रावण एक प्रभावी व्यक्तित्व के स्वामी थें| उनमें  हर गुण थें ! आज के पापी इंसान को तो रावण की संज्ञा देना, रावण का घोर अपमान करना है| रावण ने एक गलती कि उन्होंने सीता का अपरहण किया| पर उसके पीछे का कारन क्यों कोई नहीं देखता|
राम ने तो कई गल्तियां की .....सीता जैसी सुकोमल नारी को वन-वन ले भटकें, पत्नी आज्ञा मान स्वर्ण-हिरन के पीछे दौड़े, जबकि मालूम था कि ऐसा हो नहीं सकता, फिर सीता की अग्नि-परीक्षा लीं | इससे भी संतुष्टि ना मिली तो उन्होंने गर्भवती सीता का परित्याग कर दिया|  वह भी किसी स्थान पर सुरक्षित सम्मान सहित पहुंचवाएं होते तो भी कुछ बात ठीक थी, पर उन्होंने जंगल में छुड़वाया|

कहाँ  रावण की महज एक गलती, कहाँ  राम की इतनी सारी गल्तियाँ|  जब राम की गलती के पीछे दस आधार बतायें जातें हैं, तो रावण की गलती के पीछे कोई यह क्यों नहीं देखता, कि रावण ने अपनी प्रिय बहन के लिए सीता हरण किया|
खैर वह भी बात अलग थी, पर आज के नालायक पापियों के लिए रावण कि संज्ञा भला क्यों ?  काश आज के पापी रावण के नख बराबर भी होते तो शायद पाप में कुछ कमी आ जाती| पर आज के पापी, एक रावण नहीं करोंणों रावण के द्वारा हुय पाप को
भी मिला  दें तो भी आजकल का एक पापी न तैयार होगा | हाँ आज के पापी को समझने के लिय  सतयुग ही नहीं बल्कि द्वापर युग के दुस्साशन, दुर्योधन जैसे पापियों को भी मिलाना पड़ेगा |

राम जो सतयुग में किये आज कोई करें , तो उसे भी लोग पापी ही कहेंगे| पर उन्हें नहीं कहतें क्योंकि वो बिष्णु भगवान के अंश थे| यदि आज रावण भी होंते तो शायद उनका स्थान भी भिन्न होता |
सब राम जैसे बने, रावण जैसे नहीं | सुनकर आश्चर्य होता हैं | क्या अभी कम नारियों  पर अत्याचार हों रहें हैं, यदि आज सब राम बन गए तो, पाप कि परकाष्ठा हो जाएगी| हों सकता हैं यह हमारे वचन अतिश्योक्ति से लगे पर सच यहीं हैं |
हम आदर करते है
राम  का और साथ-साथ रावण का भी| हमें लगता है हर साल रावण का पुतला दहन कर पैसा बर्बाद करने से अच्छा है, कि हर साल एक बलात्कारी रावण की जगह, एक आतंकवादी कुभ्करण की जगह और एक भ्रष्टाचारी या डकैत मेघनाथ की जगह, भरी सभा में फांसी दे दी  जाय | हर साल दशहरे पर ऐसा हो इससे पैंसे की बर्बादी भी रुकेंगी और गुनाहगार भी कम हो जायेंगे | सार्वजिनक रूप से जब सब पापी का नाश देखेंगे तो खौफ पैदा होगा और फिर पाप करने से ही तौबा करने लगेंगे |
इससे अपराध में कमी भी आएगी और जो पापी है ५-१० साल में निपट जायेंगे | और तो और आगे से तुच्छ मानसिकता, मनोरोगी भी किसी भी पाप को करने से पहले सौ नहीं हजार बार सोचेंगे| क्यों ? हैं न ....सविता मिश्रा



सभी को दशहरे की हार्दिक बधाई .............

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

:)
सहमत !
हर पहलू अलग होता है !
एक ही पहलू नहीं देखना चाहिये !

Kailash Sharma said...

बहुत विचारणीय आलेख...

Nirupama Mishra said...

सही विश्लेषण किया आपने,,,,

कविता रावत said...

काश कि ऐसा हो रावण कुम्भकरण और मेघनाथ की जगह पापियों को सरेआम सजा दी जाय ...