Monday 4 August 2014

दादी

रोहित गाँव पहुँचने के दो घंटे बाद ही, बहुत  खुश हो अपनी प्रिंसिपल पत्नी को फोन करता है ..."स्वीट हाट, अम्मा मान गयी, उसे कल ही लेके मैं आ रहा हूँ वह ‘कमला वाला कमरा’ जरा साफ़ करा देना | और हाँ ! जो पिताजी की तस्वीर स्टोर रुम में  फेंक दी थी तुमने, वह पड़ी होगी कहीं | उसे खोजकर  उस पर सुंदर सा गमकते फूलों का हार जरुर चढ़ा देना | इतना तो कर सकती हो न मेरे लिय, प्लीज .. !”  बेटे से कुछ कहने आईं कमरे के बाहर खड़ी माँ बेटे की बात सुन सन्न रह गयी |  आँखों से झर-झर आँसुओ की धारा बहने लगती है, पर पोते को देखने की ख़ुशी में  उलटे पाँव हो कपड़ें-लत्तें  की एक गठरी बांध लेती है |
“मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है, तुम समझते हो न ? कहते हुए खुद की आत्मा को टांग देती है दीवार पर लटकती अपने पति की तस्वीर पर हार के साथ | 
“अम्मा जल्दी करो देर हो रही |”
 रुआसें स्वर में बोली - “तुम समझ गये न ! अपनी स्वाभिमानी आत्मा के साथ गयी तो दो पल भी नहीं ठहर पाऊँगीं अपनी बहु के पास
बहु के पास रहने के लिए अपनी आत्मा को अपनी  कुटीया में ही छोड़ना होगा |  आँसुओ  को दिल के कोने में दफन कर स्वार्थी बेटे के साथ चल देती है शहर की ओर..|

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

माँ का दिल है जो मानता नहीं ... वर्ना ऐसे बेटों को देखना भी नहीं चाहिए ... बहुत संवेदनशील कहानी ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

digmbar bhaiya saadr namste ....shukriya dil se