Sunday 28 October 2012

भाग्य-विधाता~

किस्मत जहाँ भी
ले जायेगी
जायेगें हम वहीं

दाना लिखा है
जहाँ का
खायेगें हम वहीं

मौत की दस्तक
होगी जहाँ भी
बुलायेगा वह वहीं

आदमी तो
कठपुतली है
जहाँ घुमायेगा वह
घूमेगा वो वहीं

जहाँ चाहते है प्रभु
चल देते हम वहीं
भाग्य-विधाता है वह
हम तो कुछ भी नहीं |

|| सविता मिश्रा 'अक्षजा' ||

२८ /११/१९८९

1 comment:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

Savita Mishra कर्म और भाग्य दोनों को मिला के ही जीवन की खिचड़ी तैयार होती है ...आदमी स्वस्थ होता है यानि खाता -पीता , धनी-धाकड़ हो तो उसके जीवन में चावल यानी भाग्य बड़ा प्रबल होता है और अस्वस्थ यानि गरीब हो तो उसके जीवन में दाल की मात्रा अधिक होती है यानि कर्म की ....कर्म जितना करेगा उतना ही फल मिलेगा पर किसी-किसी का भाग्य पूर्वजन्मों के सुयोग से इस जन्म में भी फल भुगतता रहता हैं जिसके कारण वह अचानक फर्श से अर्श तक पहुँच जाता है | कुल मिलाके भाग्य की प्रबलता होती ही हैं | सविता