
मैं तेरे स्वागत में क्या गाऊं रे ,
तुझ पर तो जाये कोयल भी वार ,
करूँ कौन से शब्द इस्तेमाल रे ,
तु तो है शब्दों का भण्डार |
मैं तेरे स्वागत में करूँ क्या आज ,
तु तो है सभी का सरताज ,
तेरे लिए फिखा पड़ता है ,
मेरा यह स्वर्ण तख्तों ताज |
मैं तेरे स्वागत में कैसा दीप जलाऊ रे ,
तु तो स्वयं ही है प्रकाश ,
सूर्य कों दीपक दिखाऊ रे ,
मैं तो मन का दीप जलाऊ रे|
मैं तेरे स्वागत में फूल बिछाऊ रे ,
तु तो है फूलों से भी कोमल ,
फूल भी चुभ ना जाये कही ,
मैं अपना आँचल बिछाऊ रे |
||सविता मिश्रा ||
२८ /११/१९८९
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