"अरे बेबी! इतनी मंहगी ड्रेस फाड़ डाली | कैसे फटी कुछ बताओगी?"
"माँ ! वो -वो ..!"
"क्या वो- वो लगा रक्खी है, दस साल की हो रही है, फिर भी शिशुओ-सी हरकत करती है |"
"माँ! वो.., वो नीचे सोसायटी में ..!"
"क्या नीचे ? किसी ने तुझसे कुछ किया क्या ? कहीं टॉफी या चॉकलेट...?" घबराकर नीतू अपनी बेटी के पूरे शरीर पर बारीकी से नजर दौड़ाते हुए सवाल पर सवाल पूछती गयी |
"माँ ! माँ सुनो तो ....|" चॉकलेट वाला छुपाया हाथ दिखाकर कुछ कहने की कोशिश की तो माँ चॉकलेट देख परेशान-सी हो चीख पड़ी -
"क्या सुनू ? कहा था न मैंने, अकेले कहीं मत जाना | कोई उठा ले ...|
घंटी बजी ! दरवाजा खोलते वक्त भी नीतू बच्ची को डांट ही रही थी | टीवी का स्वर दब गया था उसकी आवाज़ से |
"अरे तू ! आज जल्दी आ गयी !"
"'बीबी जी' उ आS कर..."
"तेरा शराबी पति आया था..! कहीं वहीं तो कुछ ..!" सिर पर हाथ रख धम्म से सोफ़े पर बैठ गयी।
फिर चंद मिनट बाद बोली-- "देख मेरी बेटी को..!"
"गलती होई गयी ! माफ़ी ..!"
"क्या माफ़ी ..! पुलिस को फ़ोन करती हूँ मैं |"
"उ बीबी जी !सुनिए तो..! बेबी नीचे बच्चुवन के साथ मा छुक-छुक रेलगाड़ी खेलत रहीन | उहीं में मोरी बिटिया से इनका फ्राक फटी गवा है | मोरा मरद कछू न करो ..!" फ़ोन को पकड़कर डरती हुई कामवाली बोली।
"ओह ! मेरी तो जान हलक में अटक गयी थी | इतनी देर से बस यह वो-वो कर रही थी, कुछ और बताई ही नहीं |"
"मम्मी ! आप तो डांटती ही जा रही थी, बात कहाँ सुन रही थी मेरी| फ्राक फटने पर ऐसे रियेक्ट कर रही थी जैसे गेम में कपड़े, फटते ही नहीं हैं..|
"फटते हैं ! पर तेरे..!"
"भैया भी तो पिछले हफ्ते कबड्डी में शर्ट फाड़ के आये थे, उन्हें तो आप ऐसे नहीं डांटी थी |"
"वो, वो ...|"
"देखिए ! अब 'आप' वो-वो कर रही हैं | मुझे भी गुड टच और बैड टच के बारे में पता है | अंकल ने तो बस प्यार से चॉकलेट दी थी |"तुनककर वह अपने कमरे में चली गयी |
माँ उठी और सावधान इण्डिया खटाक से बंदकर रिमोट गुस्से में पटक दी |
--००--
"माँ ! वो -वो ..!"
"क्या वो- वो लगा रक्खी है, दस साल की हो रही है, फिर भी शिशुओ-सी हरकत करती है |"
"माँ! वो.., वो नीचे सोसायटी में ..!"
"क्या नीचे ? किसी ने तुझसे कुछ किया क्या ? कहीं टॉफी या चॉकलेट...?" घबराकर नीतू अपनी बेटी के पूरे शरीर पर बारीकी से नजर दौड़ाते हुए सवाल पर सवाल पूछती गयी |
"माँ ! माँ सुनो तो ....|" चॉकलेट वाला छुपाया हाथ दिखाकर कुछ कहने की कोशिश की तो माँ चॉकलेट देख परेशान-सी हो चीख पड़ी -
"क्या सुनू ? कहा था न मैंने, अकेले कहीं मत जाना | कोई उठा ले ...|
घंटी बजी ! दरवाजा खोलते वक्त भी नीतू बच्ची को डांट ही रही थी | टीवी का स्वर दब गया था उसकी आवाज़ से |
"अरे तू ! आज जल्दी आ गयी !"
"'बीबी जी' उ आS कर..."
"तेरा शराबी पति आया था..! कहीं वहीं तो कुछ ..!" सिर पर हाथ रख धम्म से सोफ़े पर बैठ गयी।
फिर चंद मिनट बाद बोली-- "देख मेरी बेटी को..!"
"गलती होई गयी ! माफ़ी ..!"
"क्या माफ़ी ..! पुलिस को फ़ोन करती हूँ मैं |"
"उ बीबी जी !सुनिए तो..! बेबी नीचे बच्चुवन के साथ मा छुक-छुक रेलगाड़ी खेलत रहीन | उहीं में मोरी बिटिया से इनका फ्राक फटी गवा है | मोरा मरद कछू न करो ..!" फ़ोन को पकड़कर डरती हुई कामवाली बोली।
"ओह ! मेरी तो जान हलक में अटक गयी थी | इतनी देर से बस यह वो-वो कर रही थी, कुछ और बताई ही नहीं |"
"मम्मी ! आप तो डांटती ही जा रही थी, बात कहाँ सुन रही थी मेरी| फ्राक फटने पर ऐसे रियेक्ट कर रही थी जैसे गेम में कपड़े, फटते ही नहीं हैं..|
"फटते हैं ! पर तेरे..!"
"भैया भी तो पिछले हफ्ते कबड्डी में शर्ट फाड़ के आये थे, उन्हें तो आप ऐसे नहीं डांटी थी |"
"वो, वो ...|"
"देखिए ! अब 'आप' वो-वो कर रही हैं | मुझे भी गुड टच और बैड टच के बारे में पता है | अंकल ने तो बस प्यार से चॉकलेट दी थी |"तुनककर वह अपने कमरे में चली गयी |
माँ उठी और सावधान इण्डिया खटाक से बंदकर रिमोट गुस्से में पटक दी |
--००--
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
नया लेखन में 2015
2 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8-2-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1883 में दिया जाएगा
धन्यवाद
माँ को तो चिंता होना स्वाभाविक है ...
अच्छी कहानी ...
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