Saturday 28 February 2015

~~खिलाफत की सजा ~~

रूमी सजी धजी ही अदालत में पहुँच गयी | अभी उसके हाथों की मेहँदी भी न उतरी थी | आँखों से आंसू भी रुक नहीं रहे थे | चपरासी ने रोका , पर वेदना भरी चीख कमरे में बैठे जज के दिल को चीर रही थी |
जैसे ही अन्दर केबिन में जज के सामने आई | हाथ
जोड़े फफकते हुए बोली- "जज साहब अभी दस दिन हुए शादी को | आज आने को कहें थे पर रास्ते में किसी ने...| एक बार उनकी शक्ल दिख जाये बस | कृपा करिए जज साहब मुझ अभागन पर |"
यहाँ कहाँ है ? कौन है तेरा पति ? यहाँ क्यों आई ?"
साहब आपके निर्णय के खिलाफ दो दिन पहले बोला था उन्होंने और आज ...|"

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

कडवी हकीकत्त को लिख दिया ...