Monday 9 February 2015

आत्मग्लानी (लघुकथा)

"चप्पल घिस गयी बेटा, एक जोड़ी लेते आना | मैं थक गया हूँ, अब सोऊँगा |" 
"पापा! आपका प्रमोशन दो साल से रुका पड़ा है, दे दीजिये न बाबू को हज़ार रूपये | आपकी फ़ाइल वह आगे बढ़ा देगा | आप हैं कि आज के ज़माने में भी उसूलों से बंधे हैं !"
"बेटा, गाढ़े की कमाई है, ऐसे कैसे दे दूँ उसे ? और कोई गलत काम भी तो नहीं करा रहा हूँ !"
"अच्छा पापा, इन बातों में एक बात बताना भूल ही गया |" बैग से कुछ कागज़ निकालता हुआ बोला |
"क्या बेटा ?"
"सरकारी कॉलेज में मेरा एडमिशन हो गया है | लेकिन वहां का बाबू तीस हजार रूपये मांग रहा था |" कहकर कागज़ पिता के हाथ में पकड़ा दिया |
"काहे के तीस हजार...? " कागज़ पकड़ते हुए पिता ने आश्चर्य से पूछा |
"वह कह रहा था कि मैने तुम्हारे एडमिशन के लिए बड़ी मेहनत की है, थोड़ा तो मेहनताना देना ही पड़ेगा | मैंने मना किया, कहा - 'पापा बड़े सिद्धांत वादी हैं' |"
"फिर ..!" गर्व से सीना तानकर बोले |
”हँसने लगा, और फिर कहा कि 'बबुआ, पिता 'सिद्धांत वादी' हैं तब पढ़ना-लिखना भूल ही जाओ | बिना दिए-लिए सरकारी कॉलेज में एडमिशन आसान नहीं है | जाओ ! मूंगफली बेचो|" सिर झुकाकर बेटे ने एक साँस में ही सब कुछ कह डाला |
"तुम्हारा दाखिला तो हो गया है न !" आँखे तरेरकर पिता बोले |
"हाँ, मैंने यही कहा उससे | उसने कई लोगों के नाम गिना दिए | कहा पिछले साल इन सब लड़कों का भी हो गया था | लेकिन मिठाई का डिब्बा दिए बगैर सबका अधर में लटक गया |"कहते हुए नाउम्मीदी चेहरे पर दस्तक दे चुकी थी उसके |
"अच्छा..!" लम्बी सांस छोड़ते हुए बोले |
"......" पांच मिनट की ख़ामोशी के बीच बेटा सिर झुकाए मुलजिम की तरह खड़ा रहा |
“ठीक है, माँ से रूपये लेकर कल दे आना उसे |" कहकर ठंडी साँस छोड़ते हुए नजरें झुका लीं उन्होंने |
"पर पापा ! आपके उसूल !" पिता का झुर्रियों से भरा चेहरा आश्चर्य से देखते हुए बेटे ने कहा |
"मैं तो अपना वर्तमान और भविष्य ! दोनों ही उसूलों में उलझाये रहा, अब तुम्हारा भविष्य बर्बाद होते नहीं देख सकता हूँ |" सिर झुकाए उनके मुख से मरी-सी आवाज़ निकली |
बेटा अब भी असमंजसपूर्ण स्थिति में वहीं खड़ा रहा |
"आजकल सिद्धांतो की रस्सी पर बिना डगमगाए चलना बहुत मुश्किल है |"
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बुदबुदाते हुए वह पलंग पर लेटे ही थे कि चिरनिद्रा ने उन्हें आलिंगनबद्ध कर लिया | सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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नया लेखन - नए दस्तखत
9 February 2015

3 comments:

Kailash Sharma said...

आज की व्यवस्था का एक कटु चित्र...

nayee dunia said...

aisa bhi karna padta hai ....

Unknown said...

Vyakti swayam to kuchh bhi sahan kar sakta hai. Kintu Bachcho ke har samjhoto manjoor hai.