Monday 9 February 2015

रिश्‍ता (उम्रदराज प्रेमी)

"अरे विनोद! क्या हुआ बीमार से लग रहे हो! आजकल टहलने भी नहीं आते?"
"क्या बताऊँ यार?"
"अरे बताओ तो सही, शायद मैं मदद कर सकूँ!"
"यार, वह जो कोने वाली बेंच पर बैठी है न, बस उससे प्रेम-सा हो गया है"
"उससे! वह तो अभी जवान है और तुम 'पिलपिले आम'! आज गये कि कल.. !"
बात चुभने वाली थी! विनोद तीखे स्वर में बोला, "आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता, सुना नहीं कभी क्या? और वह भी चालीस से ऊपर की तो होगी ही!"
"अरे भई! सुना है, गुस्सा क्यों होता है कैरियर बनाने के चक्कर में शादी नहीं की उसने। और जब करनी चाही तो कोई लड़का ही नहीं मिला परिवार के तानों से जब आहत होती है, तो मन को सुकून देने यहाँ आ बैठती है"
"फिर बात करो न! तुम्हारी सहकर्मी रही है, तुमसे तो घुली-मिली है न"
"बात क्या करनी है, फाइनल समझो वह तो खुद कहती है, दर्जनों खा जाने वाली नजरों से अच्छा है, एक जोड़ी आँखें 'प्यार भरी' नजर से देंखे नजर चाहे उम्रदराज ही क्यूँ न हो"
दोस्त की बात सुनते ही विनोद ने चुप्पी लगा ली उसका दिल
वात्सल्यमयी हो उठा वह झेंपकर बोला- तू मेरे भतीजे का ब्‍याह इस बिटिया से करा दे उसने भी कैरियर और फिर अपने नखरों के कारण अब तक शादी नहीं की है इससे दो-तीन साल ही बस बड़ा है, बूढ़ा नहीं"
दोस्‍त का दिल ही नहीं आँखें भी भर आईं थीं। उसने विनोद को गले से लगा लिया।
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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9 फ़रवरी 2015 को संवेदना ग्रुप में लिखी

2 comments:

बाल कृष्ण शर्मा said...

खुशी मे उसकी विवशता भी ना समझ पाए उम्रदराज..

कमल नयन दुबे said...

बहुत खूब