Friday 25 July 2014

परिवेश (लघुकथा )


आज कुछ ज्यादा ही सब्जियाँ खरीद लीं तो बोझ से नीलम बेहाल हो गई। तभी साल भर के बच्चे को उठाये दस बारह वर्ष की बच्ची ने जब नीलम के आगे हाथ फैलाये तो उसे चॉकलेट देते हुए उससे एक थैला घर पहुँचाने पर उसे दस रुपये देने का कहा।
लड़की ने बच्चे को बगल में दबाया, दूसरे हाथ से थैला थाम लिया और नीलम के साथ चलने लगी। खुद का बोझा कम होने से मिली राहत के कारण अब नीलम का ध्यान उस लड़की पर गया। "तुम्हारा नाम क्या है ?"
"बिनुई" , लडकी ने शरमा कर कहा।
"और इस नन्हे का?"
"लालू" चलते-चलते उसने जवाब दिया।
"माँ कहाँ है तुम्हारी ?"
"काम पर गयी "
"स्कूल नहीं जाती ?"
"नहीं .."
"लालू को ऐसे गोद में लिए थकती नहीं ?"
"नहीं ..!"
हर सवाल का संक्षिप्त सा उत्तर मिला |

नीलम को याद आया जब उसने अपनी बेटी हिमा को कहा था "बेटा यह सब्जी का थैला अंदर रख दो।"
बिटिया ने कुछ देर कोशिश की लेकिन उससे वह थैला उठा ही नहीं। "मम्मी मुझसे नहीं उठ रहा तुम खुद ले लो न|" उसने ठुनकते हुए कहा था।

उस दिन ना जाने क्यों उसे गुस्सा आ गया था - "तू दस साल की है और तुझसे चार किलो का थैला नहीं उठ रहा।"
"माँ सच में नही उठ रहा " उसने फिर से कोशिश करते हुए जवाब दिया।
"गरीब बच्चों को देख, वह चार पांच साल में ही कितना भारी-भारी बोझा उठा लेते हैं | वह भी बिना चेहरे पर शिकन लाए |" उसने खीझते हुए कहा था।
"तो क्या मम्मी हम जो कर सकते हैं वो सब वे गरीब बच्चे भी कहां कर पाते हैं | साइंस, मैथ्स, इंग्लिश पढ़ना, रात देर तक जाग कर प्रोजेक्ट बनाना !" कहकर वह मगन हो गयी थी टीवी देखने में |


सही तो कह रही थी हिमा! जिसको जैसे परिवेश में पालेंगे वैसे ही तो बनेगा |
लालू के किलकने पर वह यादों से बाहर आई और उस बच्ची से बोली "तुम पढ़ोगी..!"
"नहीं...!"
"क्यों..?"
"माँ कहती है पढ़ाई बोझ है। हम जैसे लोग नहीं उठा सकते। और फिर इसे कौन सम्भालेगा..!" कहते ही वह लालू को गोद में लिए चल दी ।
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सविता मिश्रा "अक्षजा'
 आगरा 
 
2012.savita.mishra@gmail.com


नींव की ईट (kahani)


                                              नींव की ईंट

श्याम बहुत ही होनहार छात्र था | सभी शिक्षक उसकी बहुत ज्यादा तारीफ़ किया करते थे पेरेंट्स-टीचर मींटिंग में जब माँ-बाप अपने बेटे की तारीफ़ शिक्षकों के मुख से सुनते थे तो उनका सीना ख़ुशी से फूल जाता था | वह कक्षा एक से लेकर कक्षा आठ तक अव्वल आता रहा था | कक्षा का कोई भी विद्धार्थी उससे ज्यादा नम्बर लाना तो दूर, उसके आस-पास भी नहीं ठहरता था | वह अस्सी परसेंट से प्रथम आता तो उसकी कक्षा के और बच्चे पैंसठ प्रतिशत के जरा इधर- जरा उधर आकर ठहर जाते थे | धीरे-धीरे समय बीतता रहा था और माता-पिता के दिमाग में बेटे की तारीफ़ों के पुलिंदों का वजन बढ़ता रहा
अब श्याम के कक्षा नौ की त्रिमासिक परीक्षा नजदीक आ गयी थी । माँ नीलू को उस पर बहुत भरोसा था | अतः वह ज्यादा ध्यान नहीं देती थी
 | राजेश जब कभी पढ़ने के लिए टोकता तो वह उससे अक्सर कहती थी "बच्चा है! खेलने-खाने की उम्र हैज्यादा पढ़ाई पर जोर मत दिया करिए | अपने मन से पढ़कर क्लास में फस्ट तो आता ही है , फिर क्यों बार-बार उसे पिंच करते रहते हैं |"
कक्षा आठ में ही उसके क्लास में टॉप करने से खुश हो राजेश ने एक मोबाइल उपहार में दे दिया था जब कभी एक्स्ट्रा क्लासेस के लिए रुके या कोचिंग में देर हो तो माँ को खबर कर दे | या फिर पढ़ाई के विषय में दोस्तों से राय बात करनी हो तो मोबाइल जरुरी हो जाता है | यह सब समझकर मोबाइल उसके हाथ में रखकर उसकी आँखों की चमक में उन्होंने उसके भविष्य की चमक का आभास करना चाहा था | लेकिन मोबाइल को खोलकर उसकी एप देखने की ख़ुशी में श्याम की आँखे राजेश के चेहरे से हटकर मोबाइल स्क्रीन की चमक में खो गयी थी |
वह अपनी मेहनत जारी रक्खेगा इस विश्वास पर राजेश ने मोबाइल दे तो दिया था लेकिन
 वह भटक भी सकता है,  यह बात उनके दिमाग़ में आयी ही नहीं थी | माता-पिता जब भी श्याम के कमरे में देखते थे तो श्याम उन्हें किताबों में खोया हुआ ही दिखता था | उसकी लगन और मेहनत को देखकर माता-पिता आश्वस्त थे कि इस बार भी कक्षा में टॉप करेगा उनका बेटा | पर उन्हें क्या पता था कि श्याम तो असल में उन्हें धोखा दे रहा है | उनकी नजर बचाकर  वह ह्वाट्सएप पर चैटिंग और गेम खेलने में ही लगा रहता है | स्कूल से घर, घर से कोंचिंग | कोचिंग से आते ही अपने कमरे में पैक हो जाता था श्याम | कोचिंग जा रहा या नहीं इसकी भी कभी भी पूछताछ नहीं की राजेश ने |

समय तितली-सा उड़ता गया | परीक्षा की घड़ी नजदीक आ गयी | माँ को तो सपने में भी टीचरों के मुख से श्याम की वाहवाही करने की आवाज़ें गूँजने लगी थी | जब कभी कमरे की ओर किसी काम को कहने जाती तो उसे दरवाजे की ओर पीठ किए पढ़ता हुआ देखकर उलटे पैर वापस हो लेती थी | उसे यकीं हो चला था कि हो-न-हो उसका लाड़ला सबको इस बारी भी मात दे देगा |
परीक्षा हो चुकी थी | राजेश श्याम के कमरे में घुसा तो वह फैली किताबों के बीच उकडू बैठा था | राजेश ने पीछे से आवाज़ दी “ अरे बेटा अब तो दो-चार दिन किताबों को छोड़ दो | तुम तो बिलकुल किताबों में ही खोये रहते हो |”
पिता की आवाज़ सुनकर श्याम हड़बड़ा गया |
“मुझे पता है तुमने खूब मेहनत से पढ़ाई की है, परिणाम पक्का सुखद होगा |”
“जी पापा..!” सहमी सी आवाज़ में बोला था श्याम | पिता के जाते ही किताब के नीचे दबाकर रखा मोबाइल निकालकर उसने चैटिंग में बाय लिखकर बंद कर दिया मोबाइल |
रिजल्ट निकलने का दिन आ गया था | माता-पिता बड़े गर्व से छप्पन इंच का सीना लेकर रिजल्ट लेने स्कूल में पहुँचे थे | लेकिन इस बार सब उल्टा हुआ था | स्कूल में पहुँचते ही शिक्षकों ने शिकायतों का पुलिंदा जैसे उनके लिए तैयार ही रखा था|
 एक -एक कर सभी शिक्षकों ने श्याम की शिकायत कर डाली थी और हिदायत दी कि “आप श्याम पर अधिक ध्यान दीजिए |  बढ़ता हुआ बच्चा हैहाथ से निकल गया तो बहुत मुसीबत होगी आपको | आपके ही भले के लिये कह रहे हैं हम सब, कृपया बुरा नहीं मानियेगा |”
गणित के शिक्षक ने कहा, “आखिर इतने अधिक होनहार छात्र को ऐसा क्या हुआ कि हर सब्जेक्ट में पहले से आधे नम्बर भी नहीं ला पाया है इसबार | अगले साल बोर्ड की परीक्षा है | हमें तो उससे बड़ी उम्मीद थी कि वह आपके साथ-साथ हमारे स्कूल का भी नाम रोशन करेगा | किन्तु ..!”
“कड़ी निगरानी रखिए उसपर| प्यार से समझाइये उसे | आखिर कौन-सा अपनी बर्बादी का अस्त्र उसने उठा लिया है | जितनी जल्दी हो सकें उसे उस अस्त्र-शस्त्र से उसे मुक्त करिये, वरना हाथ मलते रह जायेंगे |” क्लास-टीचर ने बड़े दुखी मन से कहकर हाथ में रिजल्ट पकड़ा दिया |
राजेश को शिक्षकों से अपने बेटे के बारे में सुनकर आश्चर्य हो रहा था | उसे लग रहा था ये सब शिक्षक कैसी बातें कर रहे हैं मेरे बेटे के बारे में ! उन्हें हाथ में रिजल्ट लेने की जल्दी होने लगी थी | राजेश की दृष्टी अपने हाथ में आये श्याम के रिजल्ट पर गयी उनके पैरो के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गयी |
 माँ को भी काटो तो जैसे खून ही नहीं | दोनों आवक रह गये | रिजल्ट पर फटी नजरें गड़ी-की-गड़ी रह गयी | श्याम सारे विषयों में फेल था |
राजेश को बिजली का झटका-सा लगा | उसे तुरंत अपनी गलती का अहसास हुआ |
उन्होंने शिक्षक से कहा “आप चिंता न करें ! अगली बार छमाही इम्तहान में मेरा यही बेटा
पहले जैसा नम्बर लाकर के दिखाएगा |”
राजेश क्रोध और शर्म से दोहरा हुआ जा रहा था लेकिन उसे यह भी मालूम था कि बच्चे पर गुस्सा करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा | बल्कि कुछ और जुगत भिड़ानी होगी | यदि अभी नहीं उसे सम्भाल पाए तो फिर तो अगर वह भटककर दूर निकल गया तो वापस आना बड़ा मुश्किल हो जायेगा |
माँ हाथ में रिजल्ट पकड़े सहमी-सी खड़ी थी | राजेश अभी उसपर भड़केंगे | क्रोध करते हुए यह भी नहीं देखेंगे कि वह स्कूल के बाहर खड़े हैं | सामने भीड़ खड़ी है | उसपर अभी वो भीड़ हँसेंगी लेकिन राजेश ने बड़े शांत शब्दों में बोला “ये पैसे लो .! उसकी पसंद की चाकलेट लेकर सड़क की दूसरी छोर पर निकलो | तब तक मैं भीड़ से स्कूटर निकलाकर पहुँचता हूँ |” सुनकर नीलू ने राहत की साँस ली |
माना की मेरी गलती थी मैंने उसे उसके भरोसे पर छोड़ दिया था | लेकिन मुझे क्या पता था कि श्याम मोबाइल का दुरूपयोग नहीं कर रहा बल्कि मेरे विश्वास का दुरूपयोग कर रहा है वह | काश में पढ़ते वक्त उसके कमरे में उसके सामने बैठी उसपर नज़र रखती | लेकिन क्या बच्चों को इतनी कड़ी नजरों की पहरेदारी में पढ़ता हुआ देखना सही है ! नहीं ! नहीं ! कहीं और चुक हुई है | शायद हम दोनों ने उसपर अतिशय भरोसा किया वह भी बर्बादी का अस्त्र अपने ही हाथों से पकड़ाकर | थोड़ी दिन उसका सदुपयोग हो रहा या दुरूपयोग यह देखना चाहिए था | थोड़ा-सा ध्यान देती उसपर तो अवश्य उसकी गलती पकड़ आ जाती | लेकिन ..!
“अरे भई! क्या सोच रही हो ! अब स्कूटर से उतरोगी भी | घर आ गया | और देखो ! तुम उसे अभी कुछ मत बोलना | मैं देखता हूँ ..| मैंने बिगड़ने का रास्ता दिखाया था तो उस रास्ते को मैं ही बंद करूँगा, किसी भी तरह |”
घर में घुसते ही राजेश ने श्याम को बुलाया श्याम डर गया कि आज तो खैर नहीं | पापा बहुत मारेगें |
 थरथर काँपता हुआ वह आकर अपराधी की तरह सिर झुकाए खड़ा हो गया | पर राजेश ने न उसे मारा न ही डांटा | बल्कि उन्होंने तो अपने स्वर को भी मधुर पुराने गीतों में बजते संगीत की तरह रखा | उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं किया जैसा माँ- बेटे को अंदेशा था |  बस पास बुलाकर श्याम को बड़े प्यार से समझाया कि बेटा ! जिन्दगी की राह इसी उम्र में मजबूत होती है | इस उम्र में तुम अपने सुनहले भविष्य में जितनी मजबूत कड़ी लगावोगे भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा | इस कड़ी को कमजोर कर दोगे तोभविष्य की राह बहुत कठिन हो जाएगी बेटा | यूँ समझो कि यही समय नींव की ईंट है | नींव मजबूत तो भविष्य की इमारत अपने आप बुलंद ही होगी | और भटके तो फिर ...जब समझ आएगा तो बहुत देर हो चुकी होगी बेटा | मैंने तो तुम्हारे भले के लिए तुम्हें मोबाइल लेकर दिया था किन्तु तुमने तो अपने भविष्य से नहीं बल्कि मेरे विश्वास से खेला है |” कहने के बाद कमरे में एकबारगी थोड़ी देर के लिए सन्नाटा पसर गया |
सिर झुकाए खड़े हुए श्याम की समझ में पिता की बात आ गयी थी | पिता ने इशारा करके नीलू से चाकलेट माँगा फिर श्याम के हाथ में देते हुए फिर कहा “मुझे उम्मीद है तुम मुझे निराश नहीं करोगे |”
एक हाथ में चाकलेट लेते हुए उसने खुद ही दुसरे हाथ से अपना मोबाइल पापा को देते हुए बोला
, “पापा भटकाव की जड़ यह हैइसे अब आप ही रखिये और जब मैंपढ़ –लिखकर आप की तरह गजटेड अफसर हो जाऊँगा न तो आपसे इससे भी लेटेस्ट अच्छा वाला मोबाइल माँगूंगा |” यह कहने के तुरंत बाद श्याम अपने कमरे में जाकर अपनी पढ़ाई करने जाने लगा |  राजेश ने उसे पुकारा और सीने से लगाकर कहा “आई प्राउड ऑफ़ यूँ ! मुझे गर्व है तुम पर मेरे बच्चे |
“सुबह का भटका हुआ शाम को वापस घर आ जाये तो उसको भटका हुआ नहीं कहते हैं | लो बेटा मेरी ओर से भी एक चाकलेट |” उसकी कामयाबी के प्रति आश्वस्त हो राजेश और नीलू दोनों एक दुसरे की तरफ देखकर मुस्करा दिए |
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समय रहते -

भटकाव अनगिनत
भटक तुम ना जाना
तुम बच्चे बड़े सयाने
कहीं लटक ना जाना

इतने सारे लुभावने
गजेट्स हैं आयें
राह भटकावन की
बड़े जोर-शोर से
तुम्हें ये दिखलायें

इन लुभावनी चीजों में
पढ़ाई को भूल ना जाना
खेल-कूद करके भी तो
शरीर को है बलिष्ठ बनाना

बैठे-बैठे गजेट्स में
रहोगें जो उलझे
डोर भविष्य की तुम्हारी
उलझी तो फिर ना सुलझे

ये लुभावने वादे कर
तुम्हे खूब भरमायेंगी
भ्रम में फँसे जो तुम
सुलझाने की उम्र तुम्हारी
फूर्रss से निकल जाएगी

अतः समय रहते ही
जिन्दगी को सुलझाओ
मन को ऐसे मत तुम
भ्रम जाल में भटकाओ | ...सविता मिश्रा 'अक्षजा'
‎Savita Mishra‎ to भटकावेगी राह छलावी
25 July 2014

Sunday 20 July 2014

सठिया गयी हो -

शहर के बीचोबीच खूब बड़ा पार्क था | आसपास की बिल्डिंगों से ही नहीं बल्कि थोड़ी दूरी पर रहने वाले लोग भी पार्क की सुन्दरता के कारण सुबह-शाम खींचे हुए चले आते थे | शहर वासियों के लिए वह पार्क आकर्षण का केंद्र था | हर तरह के फूल के पौधे मौजूद थे पार्क में | बेला, चमेली और रात रानी के पौधे बहुतायत में थे | उनकी तीखी महक बड़ा सुकून देती थी | नीम के पेड़ की खुशबू बरसात में तो बड़ी सुहावन लगती थी | कई फलदार पेड़ भी थे जिनके नीचे बड़े-बड़े चबूतरे बने थे | प्रतिदिन ही बड़े-बुजुर्ग वहां पर बैठकर मजमा लगाते थे | कई बुजुर्ग बरगद के पेड़ के नीचे योगाभ्यास करते भी दिख जाते थे | रामप्रसाद को तो सबसे प्रिय था ठठाकर हँसने वाला अभ्यास | जीवन का सारा दर्द भूलकर चंद पल वह दिल खोलकर हँसते, यह बात और थी कि कभी-कभी आँखों की कोर पनीली हो जाती थीं |
रामप्रसाद भी अपनी पत्नी संगीता के साथ कभी-कभार आ जाते थे | दोनों बेटे विदेश में जा बसे थे | अब इस शहर में रामप्रसाद और संगीता ही एक दूजे के सुख-दुःख के साथी थे | रामप्रसाद को इस पार्क में आकर बैठना बहुत ही ज्यादा पसंद था | वो जब भी आते दो-चार घंटे पार्क में ही बिता देते थे | संगीता को पार्क में टहलने से ज्यादा अड़ोस-पड़ोस के घरों में जाकर बैठकी करना पसंद था | आज रामप्रसाद जिद करके संगीता को लेकर पार्क में आये थे | आकार एक किनारे पड़ी बेंच पर बैठ गए थे |
वहां पार्क में कई नवजोड़ो को देख न जाने रामप्रसाद को क्या सूझी | अपनी जीवन संगनी के हाथों को अपने हाथ में लेकर बोले, " याद है ना ऐसे पहली बार तुम्हारें हाथो को कब हमने अपने हाथ में लिया था |" संगीता सुनकर मुस्करा दी बस | क्योंकि उसका सारा ध्यान तो पार्क में एक तीन साल के बच्चे के साथ टहलती हुई गर्भवती युवती की ओर था | उसे देख उसके मन में अजीब-अजीब ख्याल आ रहे थे|
वह सोच रही थी यह युवती तो 'पूरे दिन' से है ,यहाँ अकेले कैसे टहल रही है, वह भी तीन साल के नन्हे बच्चे के साथ, जरुर पति ने छोड़ दिया होगा | तभी तो इस हालत में भी वो, यहाँ अकेले टहल रही है | सास-ससुर को तो आज की जनरेशन बोझ मानती है, भेज दिया होगा उन्हें वृद्धाश्रम |
न जाने क्या हो गया है आज की जनरेशन को | सास होती तो इसको ऐसी हालत में अकेले थोड़ी टहलने भेजती | खुद साथ रहकर बच्चे के साथ बहू का भी इस अवस्था में ध्यान रखती | होगी यह खूब नकचढ़ी बहू। तभी तो अब देखो कोई नहीं है इसके साथ | यह भी हो सकता है यह अकेले रहती हो | आजकल तो बहुएँ आते ही एक नया अलग घरोंदा बसा लेती हैं | हो सकता है लड़ बैठी हो अपने पति से | आज की लड़किया सहना कहाँ सीखी है | हर बात में तो पुरुषों को जवाब देने लगती हैं | नहीं सहा होगा इसके मर्द ने | इस हाल में छोड़ जाने का मतलब ही है कि लड़की लड़ाकू किस्म की है | एक बात भी सहती नहीं होगी |
हमारा जमाना था कितना कुछ सहते थे, उफ़ तक ना करते थे कभी | तभी तो आज तक एक साथ हैं हम दोनों | आखिर धीमी आँच पर ही तो खीर स्वादिष्ट पकती है। आज की पीढ़ी तो जिंदगी को भी इंस्टेंट नूडल्स-सी समझ बैठी है।
ठंडी हवा का झोंका आया तो फूलों की सुगंध से मुग्ध सी हो गई संगीता | हवा में फूलों की ताजगी उसके दिमाग को भी ताज़ा कर गयी थी | आँखों को भी हवा में मौजूद शीतलता ने शीतल कर दिया था |
एक बारगी वह खुद से खुद को ही झकझोरती हुई बोली, 'अरे नहीं- नहीं मैं गलत क्यों सोच रही हूँ | मैं भी तो जब ये आँफिस से देर से आते थे तो अकेले पार्क में टहलती थी रिंकू जब पेट में था| डॉक्टर की शख्त हिदायत थी कि रोज टहला किया करिए | पार्क में ही तो मेरा दर्द शुरू हो गया था| जिसके कारण किसी ऐसी ही बेंच पर बैठी किसी बुजुर्ग महिला ने मेरी मदद की थी | इन्हें भी उन्होंने ही तो फोन करके बुलाया था, मेरे से नम्बर लेकर| अपना वह दिन इतनी जल्दी भूल गयी | सच कहते है ये, मैं 'सठिया' गयी हूँ' सोचकर मुस्करा उठी |
शादी के एक साल के अंदर ही इनकी नौकरी शहर से बाहर लग गयी थी | सास ने जबरजस्ती मुझे भी इनके साथ भेज दिया था | यह कहकर कि मेरे बबुआ को भोजन कौन बनाकर देगा | थक हार कर आएगा तो क्या भोजन खुद बनाएगा | इनके बहुत मना करने के बावजूद 'बहू तैयार हो जा बबुआ संग जाने को' उन्होंने सख्ती से आदेश पारित कर दिया था | पुराने दिन याद आते ही चेहरे पर मुस्कान अनायास ही टहल गयी |
उसे हँसता हुआ देख राम प्रसाद ने बोला - " मन ही मन क्या सोचकर खिलखिला रही हो।" संगीता के अनसुना कर देने पर, " ये बुढ़िया! कहाँ खोयी है ?" पर बुढ़िया तो पास होकर भी पास कहाँ थी । वह तो दूर कछूआ गति से टहलती युवती में खुद को देखती हुई अपने खट्टे मीट्ठे दिनों में खो गयी थी|
युवती अब भी धीरे-धीरे चक्कर लगाती हुई संगीता के सामने से होकर आगे बढ़ गयी थी | थोड़ी ही दूरी पर उसका बेटा तिपहिए साईकिल से उसके पीछे-पीछे चल रहा था | अचानक किसी पत्थर से टकरा कर तिपहिये से गिर गया वह। गिरते ही बड़े तेज स्वर में रोने लगा | रोने का स्वर जैसे ही संगीता के कानों में पड़ा वह वर्तमान में वापस लौट आई |
दौड़ कर बच्चे को उठाकर चुप कराने लगी | युवती जल्दी दौड़ सकती नहीं थी वह जब तक पास आई उसका बेटा संगीता की गोद में मुस्करा रहा था | संगीता ने लाड लड़ाकर बच्चे को बहला लिया था | युवती नजदीक पहुँचकर धन्यवाद आंटी कह मुस्करा दी |
जब तक एक दूजे से जानपहचान कर रहे थे कि युवती संध्या का पति राकेश आ गया | हँसते हुए बोला- "डार्लिंग माफ़ कर दो, आज देर हो गयी | वह बात ऐसी थी कि बॉस ने कुछ काम दे दिया था | और सख्त हिदायत दी कि इसको निपटाए बिना घर मत जाईएगा | क्या कर सकता था तुम तो जानती ही हो, बॉस की तो सुननी ही पड़ती है |"
संगीता ने कनखियों से स्त्री को देखा उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं। चबूतरे पर चिंटू को गोद में बैठा खिला रही थीं लेकिन आँख- कान युवती की तरफ घूमे हुए सतर्क अवस्था में थे।
"घर पहुँचा तो माँ चिल्ला पड़ी कि बहू अकेले गयी है पार्क ! जा, जाकर उसे ले आ ! मेरे तो घुटने पकड़े थे अतः गयी नहीं साथ, जल्दी भाग के जा |" युवती के पति द्वारा दी गयी सफाई संगीता के कानों को भी साफ करती जा रही थी।
संध्या मुस्कराते हुए बोली "कोई बात नहीं स्वीटहार्ट |"
चिंटू अब भी संगीता के गोद में बैठा था। पास जाकर संध्या बोली, "इनसे मिलो, ये संगीता आंटी हैं, इन्होंने चिंटू को सम्भाला, वरना शायद वह आज चोटिल हो जाता।"
राकेश नमस्ते आंटी कहकर अपने बेटे चिंटू को गोद में ले लिया | फिर संध्या का हाथ पकड़ बतियाते हुए अपने घर की ओर चल दिया |
संगीता के आँखो ने तब तक उस युवती का पीछा किया जब तक कानों में युगल की खिलखिलाने की घण्टिया बजती रही। फिर अपने बुढ़ऊ को अपनी सोच बता-बताकर खूब हँसी |
बुढ़ऊ हमेशा की तरह हँसते हुए बोले, "तुम न सच में सठिया गयी हो |" कहकर दोनों ही ठहाके लगाने लग पड़े |
बुढ़िया हँसते-खेलते युगल को दूर जाते देख बोली, " सच में 'सठिया गयी हूँ' मैं |" अन्धेरा होने चला था अतः दोनों बूढ़ा-बुढ़िया भी एक दूजे का सहारा बन घर की ओर चल पड़े, अपने खट्टे मीट्ठे अनुभव एक दूजे से बाँटते हुए |
सविता मिश्रा "अक्षजा"
20 July 2014 नया लेखन ग्रुप में चित्र पर