Sunday 6 October 2019

सम्पन्न दुनिया

माँ अपनी अटैची में कपड़े ठूँसते हुए बोली -“चल बेटा, अपने पुराने मोहल्ले में। मुझे अब यहां नहीं रहना।”
“क्यों माँ! तुम्हें तो यहां की हरियाली, फलदार पेड़ और उस पर चहकते पक्षी, सुगन्ध बिखराते फूल तो बड़े ही भाये थे।  छोटे से पाण्ड में बत्तखों को देखकर कैसे तुम बच्चों-सी मचल गयी थी।”
“हाँ, लेकिन..”
“जानती हो माँ तुम्हें इस तरह से खुश देखकर पहली बार लगा था कि मैं पापा की जगह खड़ा हूँ, अपनी नौकरी की रकम से इस सोसायटी में  तुम्हारे लिए छोटा-सा फ्लैट लेकर मैंने कोई गलती नहीं की है।”
“नहीं मेरे लाडले, तूने कोई गलती नहीं की। लेकिन...”
“माँ याद है! पवनचक्की को देखकर तुमने कहा था कि चल अच्छा है यहां ये भी है, गर्मी में बिन पंखे के भी नहीं रहना पड़ेगा। फिर आज ऐसा क्या हुआ..?”
“बेटा ! सब कुछ हैं किंतु यहां इंसान नहीं हैं..!”
“हा! हा! हा! क्या माँ! यहां हजारों लोग रहते हैं, बस तुम्हें दिखते नहीं होंगे। पार्क में बैठने की तेरी और उनकी टाइमिंग एक नहीं होगी न!"
“नहीं बेटा! टाइमिंग तो एक ही है परन्तु उनमें इंसानियत नहीं है, सब रोबोटिक्स हैं!
तू लेकर चल मुझे वहीं, जहां एक दूसरे का दुख-दर्द पूछने वाले ढेरों इंसान रहते हैं।”

सविता मिश्रा 'अक्षजा'
आगरा

पेट दर्द

डॉक्टर - “अरे शर्मा जी, आप! आप तो मुहल्ले के स्वस्थ व्यक्तियों में हैं। टहलना/योगा खानपान सब समयानुसार! बताइए, फिर क्या दिक्कत हो गयी आपको?”
शर्मा जी- “डॉक्टर साहब! महीने से पेट में लगातार बेन्तहा दर्द रहने लगा है।”
डॉक्टर - “लीजिए, पाँच दिन की दवा लिख दी है। खाकर फिर आइयेगा दिखाने। इससे नहीं ठीक हुआ तो कुछ टेस्ट करवाना पड़ेगा आपको।”
शर्मा जी- “अरे डॉक्टर साहब, परसो तो पुस्तक मेले में जाना है। आठ-दस दिन उधर ही दिल्ली में मुझे रहना पड़ेगा।”
डॉक्टर - “चार-पांच साल से पुस्तक मेले में दूसरों की खुशियों में शरीक हो रहे हैं। आपकी कोई किताब नहीं आ रही है?”
शर्मा जी - “अरे कहाँ, मेरे साथ के और मेरे बाद के लिखने वाले सभी इस बार भी अपनी-अपनी किताबें लेकर आ रहे हैं । और एक मैं हूँ कि एक भी पाण्डुलिपि अभी तक पूरी नहीं हो सकी।”
डॉक्टर ने अपना लिखा पर्चा उनके हाथ से लेकर फाड़ दिया।
शर्मा जी ने हड़बड़ाकर कहा - “अरे डॉक्टर साहब, दवा! मेरा पेट दर्द !”
डॉक्टर - “आप सिर्फ गर्म दूध के साथ रात में यह लीजिए।”
शर्मा जी पर्ची पढ़ते हुए आश्चर्य से बोले - “हॉर्लिक्स! बादाम!”
मुस्कराते हुए डॉक्टर ने कहा - “हाँ, इसे पीते ही स्फूर्ति के साथ आपका दिमाग ज्यादा तेज काम करने लगेगा और आप अपनी पाण्डुलिपि की सामग्री जल्दी से जल्दी पूरी कर लेंगे। जैसे ही आपकी किताब आने की सम्भावना बनेगी, यकीनन उसी वक्त से आपको पेट दर्द में आराम मिलने लगेगा ।”
शर्मा जी फटी आंखों से डॉक्टर की ओर बस देखते रहे।
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सविता मिश्रा 'अक्षजा'
आगरा , (प्रयागराज) 
2012.savita.mishra@gmail.com
जनवरी २०१९ को लिखी