किसी के दिल को छू जाए ऐसा कोई भाव लिखने की चाहत ..कोई कवियत्री नहीं हैं हम | अपने भावों को शब्दों का अमलीजामा पहनाते हैं बस .:)
Friday 21 February 2014
Saturday 15 February 2014
'''सच और झूठ '''
झूठ मनभावन होता है
सच पावन होता है
झूठ पानी का बुल्ला होता है
सच दूध का धुला होता है
थोड़ी ही देर सही झूठ
तन मन पुलकित करता है
सच पहले ही पारी में
जमीं पर पटक देता है
झूठ मुस्कराता हुआ बुलाता है
सच मुहं बिचकाए ही रहता है
मुस्कराहट सदा भाती है
गंभीरता से दुनिया दूर भागती है
इसी लिए झूठ अक्सर लुभाता है
सच बहुत पीछे छूट जाता है|..सविता
सच पावन होता है
झूठ पानी का बुल्ला होता है
सच दूध का धुला होता है
थोड़ी ही देर सही झूठ
तन मन पुलकित करता है
सच पहले ही पारी में
जमीं पर पटक देता है
झूठ मुस्कराता हुआ बुलाता है
सच मुहं बिचकाए ही रहता है
मुस्कराहट सदा भाती है
गंभीरता से दुनिया दूर भागती है
इसी लिए झूठ अक्सर लुभाता है
सच बहुत पीछे छूट जाता है|..सविता
Tuesday 4 February 2014
इन्कलाब लाने का साहस
ये सब खोखले शब्द मात्र है
इन शब्दों के झमेले में
जो कोई भी कभी पड़ा
अपनी दुर्दशा देख
पश्चाताप के आंसू रोया।
दुर्दशा को नजर अंदाज कर
कुछ विद्रोह के स्वर
फिर भी मुखरित हुए,
पर दबी जुबान में
आमने-सामने विद्रोह से
कतराते है लोग।
विद्रोही बनना
आसान बात नहीं होती है ...
कहीं -कहीं क्रान्ति की
उठती है आवाज
आग की लपटों सी
पर बड़ी जल्दी
ठंडी भी पड़ जाती है।
चिंगारी फिर भी
दबी रहती है,
राख के ढेर में
बस हवा देने भर की
देर होती है।
हवा देने वालों में
इतना दमखम नहीं होता कि
वह इस लपट को
दूर तक ले जा सकें
एक नया इन्कलाब ला सकें।
इस भटके हुए दूषित, शापित
समाज, देश में और खुद में भी
इन्कलाब लाने का साहस
हममें तो नहीं क्या आप में हैं ?
---00---सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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