Tuesday 11 September 2018

गहमर-साहित्यक-यात्रा

गहमर की धरती पर 8-9सितम्बर को अमृतवर्षा हुई ...आयोजन था 'अखिल भारतीय गोपाल दास गहमरी साहित्यकार सम्मेलन' जो की 'गहमर इंटर कॉलेज गहमर' जनपद गाजीपुर में हुआ। इस अमृतवर्षा का लाभ हम भी ले सके, यह हमारा सौभाग्य रहा..।
7 सितम्बर रात 2:15 पर ट्रेन पकड़े और भदौरा स्टेशन पर पहुँचे रात 11:30 बजे के आसपास। वहाँ पर अखण्ड भाई मिले फिर बाइक से उनके घर की ओर। कुल मिलाकर पूरे 22 घण्टे में पहुँचे गहमर की भूमि पर। जैसे-जैसे ट्रेन खच्चर हो रही थी वैसे-वैसे दिमाग में एक अजीबोगरीब डर बैठ रहा था। क्योंकि गाँव तो गाँव ही होता है कितना भी नामी-गिरामी हो या फिर मशहूर लोगों का ही क्यों न हो। शहरों की तरह सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें तो नहीं ही मिलती ऊपर से सड़क खराब है! जाने से एक दिन पहले ही हम सुन चुके थे। खाना-पानी करके बिस्तर पर पड़े फिर अगले दिन सुबह छः बजे उठ गए। सुबह नाश्ता-पानी करके कार्यक्रम स्थल का जायजा लेने पहुँच गए जो कि सड़क पार करते ही स्थित था। वहाँ बच्चों को भाला फेंककर अभ्यास करते हुए देखना भी अच्छा लगा।
 कार्यक्रम थोड़ा देर से शुरू हुआ लेकिन देर आए दुरुस्त आए वाली स्थिति थी। गर्मी से बेहाल हुए जा रहे थे लेकिन अच्छा लगा सबको सुनकर। यह भी महसूस हुआ कि ऐसे आयोजनों में जाने पर ज्यादा शिष्टाचार निभाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए सामने वाला आदमी आपको पीछे और पीछे करने के चक्कर में हो जाता है...खैर देखते हैं कि हम आयोजनों में अपनी भागीदारी करते हुए कब तक शिष्टाचार न छोड़ेने की कवायद कर पाते हैं।
लघुकथा वाचन में हमने अपनी लघुकथा भी पढ़ी। फिर शाम को कवि सम्मेलन में कविता पाठ भी किया। औरों को सुनकर अच्छा लगा सबसे अच्छा तब लगता है जब कई लोग बिना देखे ही कविता या कथा-कहानियां पढ़ लेते हैं, एक हम हैं कि मुंडी पेपर से उठती ही नहीं।
वाराणसी के स्कूल से आई लड़कियों ने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी। डांस, गायन में कजरी, स्वागत गीत सब मन को लुभाने ले लिए पर्याप्त थे। और असम प्रदेश का डांस के तो क्या कहने, बेहद अच्छी प्रस्तुति रही वहां ले लोक-नृत्य की भी।

 सैनिकों के गांव में एक से बढ़कर एक न जाने कितने मोती दिखाई पड़े....कुछ मोती हमारे हाथ लगे कुछ छिटक गए..उन सब ज्ञानियों के बीच खुद को खड़ा देखकर अभूतपूर्व खुशी मिली जिसे शायद शब्दों में बयान नहीं कर सकते हैं...दो-चार-दस से मिलने का साहस भी नहीं जुटा पाए हम...। श्रवण भैया ने नाम लेकर कहा था कि मेरा दोस्त है वहाँ मिलेगा लेकिन उन्हें सामने पाकर सिर्फ अभिवादन करके रह गए | परिचय न दिए न बात ही कर पाए। सबसे बड़ी खुशी की बात यह भी रही कि अयोध्या से शास्त्री जी आए थे जिन्हें शासन द्वारा दो लाख का पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई है।
हमें इस बात का बड़ा अफसोस है कि एक बुजुर्ग शायद उसी गाँव की कोई प्रतिभा थी, वह कुछ सुनाना चाहते थे..हमसे 'माता जी' कहकर बोले थे अपनी बात लेकिन. जब तक हम उनकी बात समझते तब तक कोई उनसे कह चुका था कि कार्यक्रम समाप्त हो चुका कल आके सुनाना बाबा..कल यानी दूसरे दिन वह दिखे ही न...!
सुबह कार्यक्रम स्थल पर भी एक लड़का जो एयरफोर्स में जाना चाहता था और कवि सम्मेलन में भाग लेता रहता है जैसा कि उसने बताया, उसने अपनी तीन चार कविता सुनाई थी । काश ऐसे ही उन बुजुर्ग का मान रखते हुए हम उनसे भी सुन लेते, कुछ जो वो बोलना-गाना चाहते थे और मोबाइल में कैद कर लेते। इससे उनका मान भी रह जाता और हमें भी पछतावा न होता, खैर।

पहली बार कवि सम्मेलन में भाग लेने का सुअवसर मिला , संस्थाओं के आयोजनों में, संकलन के विमोचनों में और आगरा की साधिका समिति की बैठकों में कविता-पाठ करते रहे हैं पर ऐसे बड़े-बुजुर्गों-ज्ञानियों के बीच मंचासीन होकर कवि सम्मेलन का अनुभव पहली बार लिया..पहले से हमने अपना नाम भी नहीं दिया था लेकिन वहाँ रमेश तिवारी भैया ने पूछा फिर हमारा नाम लिख लिया । सच में बड़ा अजीब लगा । शायद पहली बार ऐसे मंच की जमीन पर बैठने के कारण लेकिन बहुत सुखद भी लगा और जब श्री सतीश राज पुष्करणा अंकल ने कहा कि बढ़िया कविता थी, तो हमारी प्रसन्नता की सीमा का अंदाजा भी कोई लगा नहीं सकता है...😊😊
लघुकथा वाचन-कवि -सम्मेलन और सम्मान पाकर अपार खुशी तो हुई ही, मेजबानों के आथित्य-सत्कार से भी मन गदगद हुआ😊
गर्मी से बड़े बेहाल भले हुए लेकिन गंगा मैया और कामाख्या देवी जी का दर्शन करके कलेजे को बड़ी ठंडक पहुँची।

दूसरे दिन सुबह गंगा मैया की सैर हुई बीना बुंदकी दीदी के सिवा किसी ने गंगा में डुबकी नहीं लगाई बस फोटो-शूट करने में लगे रहें।  उसके बाद कामाख्या माँ के दर्शन करने पहुँचे सब..वहाँ भी मैया के दर्शन और फोटो-पे-फोटो लिए गए..कई जनों से उधर वार्ता भी हुई। फोटोग्राफर से ग्रुप फोटो निकलवाई गयी जिसे लगभग सबने ही लिया, वह भी खुश हो गया होगा। फिर वहाँ से लौटकर नाश्ता किया गया। नाश्ते में लीट्टी बनी थी जो की न जाने कितने साल बाद खाई हमने। वार्तालाप और नाश्ता करने के बाद कार्यक्रम स्थल का रुख किया गया।
सम्मान पाकर किसे नहीं खुशी होगी अतः हमें भी 'पंडित कपिल देव द्विवेदी स्मृति सम्मान'  (समाज सेविका क्षेत्र में ) पाकर बहुत खुशी हो रही है...एक जन ने कहा था कि सविता तुम कब से सेविका बन गयी तो हमारा जवाब था  कि हम भारतवासियों के मूल में ही सेवा भाव है ।  विरला ही ऐसा कोई भारतवासी होगा जो जो भारतीयता के इस गुण से वंचित होगा। कुल मिलाकर गहमर की धरती पर आकर अपार खुशी मिली, इस महाकुंभ में आकर गंगा जल की कुछ बूंदें अवश्य ही अपने दिमागी कमंडल में आ पहुँची होगी और हम भी साहित्य के पथरीली जमीन पर चलने की कोशिश कर पाएंगे।
एक दो मोती ऐसे भी दिखे जिनकी चमक हमें आकर्षित न कर सकी ...फिलहाल मोतियों की माला के एक-एक मोती जो हमारे मोबाइल की गैलरी में गूंथे हुए हैं उन सबको उनके नाम के साथ पहचानने की कवायद जारी है...😊
आयोजन में हमें 'कपिल देव शास्त्री सम्मान' से सम्मानित करने हेतु जजों की टीम और अखंड गहमरी का धन्यवाद- कविता पाठ और लघुकथा पाठ के लिए मंच प्रदान करने क लिए भी आभार 😊😊
चाक-चौबंद व्यवस्था के लिए अखण्ड गहमरी भैया और उनके परिवार की प्रशंसा तो करना बनता है उनके सहयोगियों और उनके पूरे परिवार का हृदयतल से आभार । खासकर उनके बेटे और नन्हे से भतीजे का। सुबह हिन्दुस्तान अखबार में कवि-सम्मेलन खबर के साथ अपनी फोटो भी थी इससे और खुशी हुई शायद बड़ो-बड़ो को छोड़कर अंगार भाई के साथ हमारी फोटो इसलिए थी पत्रकार भाई सोचे होंगे ये आगरा के पगलखाने से भागकर आयी है इसकी तो फोटो लगा ही दो😀
आते-आते अखण्ड भैया के पिताजी से भी जरा-सी बात हुई ..फोटो भले न ले पाए उनकी लेकिन साथ में लेकिन मिलकर बात करके एक हस्ती लगे। उनका चेहरा भी रोबीले होने की कहानी कह रहा था। सबसे अच्छी बात लगी कि समारोह के मंच पर वह अपने वास्तविक परम्परावादी लिबास में रहें। वैसे तो धोती को लोग पीछे खोंसकर पहनते हैं लेकिन उन्होंने धोती को नार्मल कहिए या हम कहे कि तमिल स्टाइल में पहन रखा था उन्होंने तो आप सब अच्छे से समझ पाएंगे आप सब |
लौटने में भारत बंद आह्वान के कारण तनिक समस्या आयी हमें भदौरा के बजाय बक्सर से ट्रेन पकड़नी पड़ी लेकिन ओमप्रकाश क्षत्रिय भैया का साथ था अतः चिंतामुक्त थे । कुलमिलाकर 10 सितम्बर 11 बजे गहमर से निकलकर 11 सितम्बर की सुबह 8 बजे अपने घर को आ गए। ट्रेन में भी वाराणसी से पंडित जनों का झुंड बैठा था शाम ढलते ढलते पता चला सब प्राचार्य हैं और साथ-साथ कवि भी।
ऐसे सहित्यक महाकुंभ से वापस आने के बाद अपने आप से कहना पड़ता है कि सविता कुछ बढ़िया से लिखना- पढ़ना सीख ले..ऐसे आयोजनों में तेरी स्थिति डांट खाने से पहले वाले कालिदास सरीखी न हो....चार दिन अपने को ऐसे ही समझाने हुए पाँचवे दिन फिर सब दिन जात एक समान हो जाता है...खैर जब तक हम जागे या न भी जागे , आप सब महाकुंभ में चमकते चेहरों को निहारिए...और पहचानिए😊😊...सविता मिश्रा 'अक्षजा'













Monday 3 September 2018

'चुनिंदा लघुकथाएँ' साझा-संकलन-


'चुनिंदा लघुकथाएँ' साझा-संकलन -रवीना प्रकाशन
सम्पादक-ओमप्रकाश क्षत्रिय भैया
प्रकाशन समय -जून २०१८
"तोहफ़ा" #लघुकथा के साथ 'चुनिंदा लघुकथाएँ' सांझा-संकलन में भी उपस्थित हैं हम। आभार सम्पादक ओमप्रकाश क्षत्रिय भैया का --००--
 'तोहफ़ा' लघुकथा इस लिंक पर उपलब्ध --
http://kavitabhawana.blogspot.com/2017/11/blog-post_27.html
लेखिकीय पुस्तक नहीं दी गयी |

साझा-लघुकथा-संग्रह (व्योरा)

पिछले दस लघुकथा-संकलन में आज १/९/२०१८ तक कुल छः और #साझा-लघुकथा-संग्रह पुस्तक रूप में जुड़ गयी हैं |

१--"उद्गार" लघुकथा-संकलन- वनिका पब्लिकेशन फरवरी २९१८ में ..
https://kavitabhawana.blogspot.com/2018/03/blog-post.html

२--- 'चुनिंदा लघुकथाएँ' साझा-संकलन -रवीना प्रकाशन जून २०१८
http://kavitabhawana.blogspot.com/.../blog-post_28.html...

३--'अभिव्यक्ति के स्वर' लघुकथा-संकलन--'हिन्द युग्म' से प्रकाशित जुलाई २०१८
https://kavitabhawana.blogspot.com/.../blog-post_2.html...


४--'नयी सदी की लघुकथाएँ' लघुकथा-संकलन- 'नवशिला प्रकाशन' से प्रकाशित जुलाई २०१८
http://kavitabhawana.blogspot.com/2018/09/blog-post_3.html

५--लघुत्तम-महत्तम लघुकथा-संकलन-अभ्युत्थान प्रकाशन अगस्त २०१८

http://kavitabhawana.blogspot.com/2018/09/blog-post_1.html

६--लघुकथा अनवरत --अयन प्रकाशन सितम्बर २०१८

लघुत्तम-महत्तम लघुकथा-संकलन (साझा)

लघुत्तम-महत्तम लघुकथा-संकलन-अभ्युत्थान प्रकाशन
संपादिका -महिमा 'श्रीवास्तव' वर्मा
प्रकाशन समय - अगस्त २०१८
लघुकथा के १४वें संकलन में मेरी 'तीन' लघुकथाओं को स्थान दिया गया है | संपादिका महिमा 'श्रीवास्तव' वर्मा का आभार।
१--एक बार फिर
२--वेटिकन सिटी
३--इज्ज़त
--००--
एक बार फिर

"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही हूँ |"
"तुम हमेशा ही तो पीछे थी |" पार्क से बाहर निकलकर पति ने कहा |
"मैं आगे ही रही !" पत्नी पति के बराबर आकर बोली |
"अच्छा ..!"
"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारे अहम को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ, समझे !"
"शादी वक्त जयमाल में पीछे रही...!"
"डाला जयमाल तो मैंने आगे !"
"फेरे में तो पीछे रही..!"
"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न !"
"गृह प्रवेश में तो पीछे..!"
"जनाब ! भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी | "
इसी आगे पीछे को लेकर एक-दूजे से नोंकझोक करते हुए ही बेफिक्र हो बाइक से घर की ओर जा रहे थे | सुनसान रास्ते पर बदमाशों ने उनकी बाइक को रोककर तमंचा तान दिया - "निकालो सारे गहने" चीखा एक |
पत्नी को अपने पीछे कर, पति बदमाशों से भिड़ गया |
जैसे ही घोड़ा दबा, उसकी बाहों में झूलती हुई पत्नी मुस्करा कर बोली- " लो जी ! यहाँ भी मैं आगे ..!" सावित्री-सी होने का अहम उसके चेहरे पर तारी होने को था |
"ऐसे-कैसे मेरी शेरनी ! मैं तो रेड बेल्ट पर ही अटक गया था, तू तो ब्लैक बेल्ट थी | इतने में ही हिम्मत टूट गयी !
सुनकर वह दहाड़ी | बाह में गोली लगने के बावजूद पति के हमकदम हो लड़ी थक के चुकते दोनों इससे पहले ही सायरन की आवाज़ गूंजने लगी | बदमाशों के रफूचक्कर होते ही दोनों एक दुसरे के बाँहों में मुस्कराकर बोले हम साथ-साथ हैं, न आगे न पीछे |"
--००--सविता मिश्रा 'अक्षजा'

२--वेटिकन सिटी इस लिंक पर --
http://kavitabhawana.blogspot.com/2015/05/blog-post_15.html
३--इज्ज़त इस लिंक पर --
http://kavitabhawana.blogspot.com/2017/05/blog-post_12.html

'नयी सदी की लघुकथाएँ' लघुकथा-संकलन

'नयी सदी की लघुकथाएँ' लघुकथा-संकलन- 'नवशिला प्रकाशन' से प्रकाशित
सम्पादक- अनिल शूर आजाद
 प्रकाशन समय - जुलाई २०१८
 लघुकथा के १3वें संकलन में मेरी 'दो' लघुकथाओं को स्थान दिया गया है | सम्पादक डॉ.अनिल शूर आज़ाद का आभार।
 १--मन का चोर
 २--दूसरा कन्धा
 --००--
 १--मन का चोर
 सही ---
https://kavitabhawana.blogspot.com/2014/09/blog-post_87.html
 पहले वाली --
https://kavitabhawana.blogspot.com/2014/08/blog-post_19.html
२--दूसरा कन्धा
http://kavitabhawana.blogspot.com/2015/03/blog-post.html

Sunday 2 September 2018

'अभिव्यक्ति के स्वर' लघुकथा-संकलन


'अभिव्यक्ति के स्वर' लघुकथा-संकलन - 'हिन्द युग्म' से प्रकाशित
सम्पादक- विभा रानी श्रीवास्तव
प्रकाशन समय - जुलाई २०१८
लघुकथा के १२वें संकलन में मेरी 'पाँच' लघुकथाओं को स्थान दिया गया है | सम्पादक विभा रानी श्रीवास्तव दीदी का आभार।
१--मूल्य (बेटी)
२--वर्दी
३--ग्लानि 
४--गिरह
५--टीस 
--०००--
१--मूल्य इस लिंक पर ---
https://kavitabhawana.blogspot.com/2016/12/blog-post.html
२--वर्दी इस लिंक पर ---अविराम साहित्यिकी के जुलाई-सितम्बर २०१७ में छपी है यह लघुकथा --

३--
ग्लानि

" बेटा! अच्छा हुआ जो तू आ गया तेरे बाबा, जब से तेरे पास से लौटे हैं, गुमसुम से रहने लगे हैंक्या हुआ ऐसा वहाँ?"
"कुछ नहीं अम्मा!"
"कुछ तो हुआ ही होगा! रोज जितनी हिम्मत होती है, खेत में जाकर पेड़-पौधे लगाते रहते हैं गाँव वालों से भी उस सूख गए गड्ढे को खोदकर फिर से तालाब बनाने की गुजारिस करते फिर रहे हैं"
"तेरा पोता सुशील, अब बड़ा हो गया है अम्मा! और तू जानती है, वो बचपन से ही स्पष्ट-वक्ता रहा है"
"तो क्या उसने इन्हें कोई चुभती हुई बात कह दी! वरना जो आदमी एक तुलसी का पौधा न रोपा कभी, वह दिन में दो-चार पेड़ लगा दे रहा! तूने उसे कुछ बोला नहीं?"
"उसने कुछ गलत न बोला अम्मा, तो उससे क्या कहता मैं बल्कि मैं खुद बदलते वातावरण से परेशान हूँ, रिटायर होते ही इस ओर ध्यान दूँगा"
"बात तो बता बेटा, पहेलियाँ काहे बुझा रहा है? उसने ऐसा क्या कहा तेरे बाबा को?"
"उसने बाबा को फालतू पानी बहाते देख कह दिया कि दादाजी! एक दिन में बस पांच सौ लिटर पानी मिलता है इस तरह पानी की बर्बादी करेंगे, तो कैसे काम चलेगा' और..!"
"और ...कुछ और भी बोला! इतना बड़ा हो गया है क्या?" विस्मित-सी होकर अम्मा बोली
"और उसने बाबा से कह दिया कि आपके दादा-परदादा पेड़-पौधे लगाकर वातावरण को हरा-भरा रखे आप की पीढ़ी ने बैठे-बैठे उसके खूब मजे लूटे अब आपकी पीढ़ी की निष्क्रियता के दंड हम लोग भुगतेंगे ही' उसकी इन्हीं बातों से, बाबा क्रोधित होकर वहाँ से अकेले ही चले आए"
"हाय राम! उसने इतना कुछ कह कैसे दिया !"
"अम्मा! दादा-परदादा के लगाये पेड़-पौधे आंधी से उजड़ते रहे, हम उन्हें बेचते गए तालाब भी पाटकर बस्ती बसा डाली अब तक मन माफ़िक पानी की बर्बादी भी होती रही | कुएँ का भी जलस्तर गिरता जा रहा है अब इन सब का खामियाजा नई पीढ़ी को तो भुगतना ही पड़ेगा और वो इसी तरह झल्लाते हुए अपने पूर्वजों को कोसते रहेंगे.!” कहकर चिंतामग्न हो गया
थोड़ी देर बाद फिर बोला- "अम्मा! कल बाबा के साथ मैं भी पेड़ लगवा आऊँगा बस उनकी देखरेख तुम करती रहना"
"कई बार मैंने कही कि पुराने पेड़ धीरे-धीरे गिरते जा रहे हैं, लगा दीजिए कुछ फलों के पेड़ मेरे कहने से तो सुने नहीं कभी! अच्छा हुआ जो पोते ने चोट दी! अब उसकी दी हुई चोट की ओट में, जमीन की खोट दूर हो जाएगी कितने बीघे जमीन बंजर होने को थी"
---००---
Jul 31, 2016 obo
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
 
४--गिरह इस लिंक पर --

टीस

"अँजुली में गंगाजल भरकर यह कैसा संकल्प ले रहे हो रघुवीर बेटा? इस तरह संकल्प लेने का मतलब भी पता है तुम्हें!" गंगा नदी में घुटनों तक पानी में खड़े अपने बेटे को संकल्प लेते देख पूछ बैठा पिता।
"पिताजी! आप अन्दर-ही-अंदर घुलते जा रहे हैं। कितनी व्याधियों ने आपको घेर लिया है। नाती-पोतों की किलकारियों से भरा घर, फिर भी आपके चेहरे पर मैंने आज तक मुस्कराहट..।"
आहत पिता ने कहा- "बेटा! अपने नन्हें-मुन्हें बच्चों को बिलखता हुआ छोड़कर कोई माँ कैसे जा सकती है! इस कैसे-क्यों का प्रश्न मेरे जख्मों को भरने ही नहीं देता।"
"पिताजी तभी तो..!"
पिता बेटे की बात को बीच में काटते हुए बोले- "बेटा! पैंतीस सालों में परिजनों के कटाक्ष को दिल में दफ़न करना सीख गया हूँ मैं। उसके जाने के बाद समय के साथ समझौता भी कर लिया था मैंने। हो सकता है उसके लिए उस व्यक्ति का प्यार मेरे प्यार से ज्यादा हो! इसलिए वो मेरा साथ छोड़कर, उसके साथ चली गयी हो।" 
"मैं उन्हें ...!" 
बेटा क्रोध में बोल ही रहा था कि पिता ने दुखी मन से कहा -"फिर भी बेटा! मैं सब कुछ भूलना चाहता हूँ! परन्तु यह समाज मेरे जख्म को जब-तब कुरेदता रहता है।"
"समाज के द्वारा आप पर होते कटाक्ष की इसी ज्वाला में जलकर तो मैं आज संकल्प ले रहा हूँ। मैं माँ का मस्तक आपके चरणों में ले आकर रख दूँगा पिता जी, बिलकुल परशुराम की तरह।"
"बेटा! गिरा दो अँजुली का जल तुम परशुराम भले बन जाओ, पर मैं जमदग्नि नहीं बन सकता हूँ।"
--००---
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
आगरा
November 30, 2015 obo में ..
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