उठो जागो
क्यों खोयी हो
खुद में !
कभी अपना परिवार
कभी अपने बच्चे
कभी बस अपना पति
कभी अपना घर
कभी सौन्दर्य-गृह में
कर श्रृंगार
निखारती रहती
सौन्दर्य को ही !
जागो!
झांको अन्दर अपने
तुमसे ज्यादा खूबसूरत
कोई भी तो नहीं!
कभी किटी पार्टी
कभी रहती हो
करती काना-फूसी
क्यों करती हो बर्बाद समय
समय रहते जागो!
उठो !
बाहर निकलो
बदल डालो सब
तुममें शक्ति हैं
तुम दुर्गा हो!
पहचानों अपने आप को
निकलो लेकर मशाल
फैला दो अपनी रोशनी!
घर ही संवारना
काम नहीं हैं तुम्हारा
अपने देश को
अपनी मातृभूमि को
समाज एवं परिवार को भी
अलंकृत करने का
बीड़ा उठाओ !
तुम कर सकती हो
बस एक बार
अपने मन में
ठानकर तो देखो !!..सविता मिश्रा