Sunday 23 December 2012

## कैसे हो सुखद जहाँ ##

आज मचा है हो हल्ला (शोरगुल )
अजीब सी शांति होगी कल
होते है रोज बलात्कार
जागती नहीं मगर सरकार ............
त्राहिमाम-त्राहिमाम का उठता शोर
बहस छिड़ जाती कानून है कमजोर
सुरक्षित होती इससे लड़कियां कहाँ
सख्त क़ानून बने, हो सुखद जहाँ......

मन करता .....

सरेआम चौराहों पर
फांसी नहीं जनता ही सज़ा दे............
लाडलो के माँ-बाप को भी सीख दो
कि छोटी गलती पर ही एक तमाचा खींच दो
सच्ची कहावत है भय बिन होय ना प्रीती
फिर देखो कैसे कोई गलती बड़ी होती
लड़कियों को जोश प्रबल दो
हाथ में आत्मरक्षा का हथियार दो
जुडो-कराटें और मार्शल-आर्ट की शिक्षा
स्कूलों में ये सब अनिवार्य कर दो..................

हद है .......
कन्या को देवी-माँ कह पूजते
और उसी को लहुलुहान यू करते
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
अब तो यह यत्र-तत्र भी नहीं है दीखता
पहले सुबह आरती उतारतें रात में थे लूटते
परन्तु अब तो ये आचरण भी पीछे कही छूटते
दिन दहाड़े देखो चीर हरण कर डालते
बचे रहने का भ्रम फिर भी है पालते...........

सुनो भारतीयों ....
कुछ तो बचाओ मर्यादा अपनी
सरेआम क्यों गिराते हो साख अपनी
माताओं बहनों पीड़ित लड़की की पीड़ा को समझो
ऐसे बहशी पति-पुत्र को निःसंकोच जहर दे दो
होगी सजा तुम्हें भले ही हो जाने दो
पर ऐसे जहरीले नागफनी को नेस्तानबुद कर दो|...
.सावित मिश्रा

Tuesday 18 December 2012

~ सम्मान ~

देश के सिपाही देश के रक्षार्थ करते रहे है बलिदान
और नेता ही देश के बार बार  रहे करते अपमान |
सम्मान करना सिख जायेगे जिस दिन देश का
नहीं है दम जो कर पाये कोई विदेशी अपमान |...सविता मिश्रा


डरते थे गद्दारों से कभी
अब अपनों से डरते है
यूँ ही आजादी का जश्न हम
हर वर्ष करते है |
||सविता मिश्रा ||.

जिद्दी मन



जिद थी अपनी कि
जिद छोड़ देंगे,
जिद्दी मन को अपने मोड़ देंगे|
पर यह हों
ना सका कभी ,
जिद से ही
"जिद" कर बैठी|
खुद को
बदलते-बदलते,

अपना ही
वजूद खो बैठी |
अब जिद है
कि "जिद"को,
अपने अंदर
कैद कर लूँ |
जिद से ही
"जिद"को
भूल जाऊ,
पर "जिद" है
जिद्दी बहुत ही
कैसे भुलाऊँ| |

||सविता मिश्रा ||

Sunday 16 December 2012

~~सपनों का क्या कसूर ~~


हवा का एक झोंका आया
मेरे सपने बिखर गये
फिर से उनको ढूँढ कर
जोड़ना मुश्किल हो रहा है।

मेरे सपने क्या थे
यह भी मुझे याद नहीं
मैं इस भीड़ भरी दुनिया में
उन्हें किधर खोजूं ?

हे ऊँचे महलों में रहने वालो
देखो हो सकता है कहीं
मेरे सपने उड़कर
आपके चरणों में दब कर
रह गये होंगे।
वे कहीं आपके महल के
एक कोने में सिसकियाँ
ले रहे होंगे।

मेरे सपने मुझे लौटा दो
इनका कोई कसूर नहीं
कसूर तो मेरा था
कि मैंने इतने ऊँचे
सपने देखे ही क्यों ?

आप मुझे मेरे सपने
लौटा दो
फिर कभी भी यह
भूल ना होंगी
मैं अपने सपने को
सपना ही बना रहने दूंगी।

उन्हें असलियत में बदल कर
मैं अपने सपनों का खून
फिर कभी नहीं करुँगी || सविता मिश्रा

. ||सविता मिश्रा|| ३/१२/८९

बेटी हो तो ऐसे क्यों -?





बेटी हो बेटे के पहले
नहीं भोजन किया करो|
उसके उठने से पहले उसके
चाय नाश्ते की   तैयारीं कर दिया करो |

चूल्हा चौका कर घर की
सफाई किया करो
तुम्हें  पुस्तक की क्या जरुरत
भईया को वो दिया करो |

पढ़ लिख कर लार्ड गवर्नर
नहीं बन जाओगी
चूल्हा चौका सीखोगी तो
अच्छा घर वर पाओगी|

काम पियारा होता है
चाम नहीं होता पियारा
पढ़ लिख कर भी
नहीं होगा तुम्हारा वारा -न्यारा |

घर के बाहर निकलोगी तो
आँखे चार गड़ जायेगी
मौका मिलते ही तुम्हें
वो नोंच घसोट जायेगी |

भईया से पहले ही
तेरा व्याह रचाऊँगी
वरना भाभी तुझें
तानें चार सुनाएगी |

काम धाम सब सींख जाओगी
तो काम वही आयेगीं
भोजन पकाना नहीं आया
तो सास दस बात सुनाएगी |

बेटी हो बेटे से ज्यादा बिनम्र हुआ करो,
क्रोध का त्याग कर लज्जा धारण किया करो |


   ++सविता मिश्रा ++

बस यूँ ही




कंटीली वादियों में फूल ढूढ़ रहे थे 

 नामुमकिन था मुमकिन कर रहे थे |

 सविता मिश्रा
दम्भ
=====
कांटे को फूल समझने की
भूल ना कीजिय ,
चूहे है आप अदना
शेर का दंभ ना भरा कीजिये| सविता मिश्रा

Wednesday 12 December 2012

फायकू
++++++


१-कहने को बहुत कुछ
कहूँ कैसे सब
तुम्हारें लिए

२-ख्याल आयें बस तुम्हारा
करे हम क्या
तुम्हारें लिए


३-जियें जाएँ हम बस
सह सुन के
तुम्हारें लिए

४-हमने स्वादिष्ट भोजन बनाया
मन लगा कर
तुम्हारें लिए

५-तुम्हारी पसंद का भोजन
देखो बनाया हमने
तुम्हारें लिए

६-टिका है हमारा भरोसा
तुमसे ही देखो
तुम्हारें लिए


७-आँखों में प्यार भरा
तुमने देखा क्या
तुम्हारें लिए

८-रात दिन गश्त करतें
सुख चैन को
तुम्हारें लिए

९-डरतें रहें फिर भी
अँधेरे में खड़े
तुम्हारें लिए

१०-कंपकंपाती रात पहरा दिए
फिर भी देखो
तुम्हारें लिए

११-मांग सिंदूर माथे बिंदी
गले मंगलसूत्र पहने
तुम्हारें लिए

१२-भर रक्खी थी पोटली
छुपातें फिर रहें
तुम्हारें लिए

१३-सब से छुप-छुपा
राजभोग हम लायें
तुम्हारें लिए

१४-अबैध पार्किंग को हटवायें
सड़क खाली करवाएं
तुम्हारें लिए

१५-तुम मेरे बन जाओं
प्यार जताएं बस
तुम्हारें लिए

१६-क्यों नहीं समझतें तुम
दिनभर यादों में
तुम्हारे लिए


१७-मायूस ना हो वतन
जान दे देगें
तुम्हारें लिए

१८-क्रोधित हो बरस पड़ी
कहा कोई जो
तुम्हारें लिए

१९-गंगा मैया पाप धूलो
सर झुकाएं हम
तुम्हारें लिए

२०-मैया तू जगत जननी
हम मस्तक झुकाएं
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

## फायकू ##

१-इरादा अपना बता तो
जिन्दगी छोड़ दे
तुम्हारें लिए..सविता

२-बेदर्दो की दुनिया में
दर्द लिए फिरतें
तुम्हारें लिए..सविता

३-तुम मेरे इंद्र हो
हम सूरज बने
तुम्हारें लिए

४-दूध फाटे दही बने
लस्सी की हमने
तुम्हारें लिए

५-वह बोले हमेशा कड़वा
शहद घोल बताएं
तुम्हारें लिए

६-सब के सब गिरगिट
रंग बदलते जाये
तुम्हारें लिए

७-राम नाम खूबय जपा
नहीं समझ आये
तुम्हारें लिए

८-बस एक दीपक से
अँधियारा मिटाने चले
तुम्हारें लिए

९-चोट तू खाया दर्द
हमको ही हुआ
तुम्हारें लिए

१०-गम के समुन्दर से
मोती चुने हम
तुम्हारें लिए

११-खेत खलिहान फैली हरयाली
यादों में तेरी
तुम्हारें लिए

१२-ठानते कैसे ना हम
सम्मान जुड़ा था
तुम्हारें लिए

१३-मुश्किल भले ही हो
रखना सम्मान था
तुम्हारें लिए

१४-जीतें थे कभी हम
मर भी जाये
तुम्हारें लिए

१५-जंगलराज मचा हाहाकार चौतरफा
हम करेंगे कुछ
तुम्हारें लिए

१६-आँखों में ख्वाब सजाएँ है
कोई अपना आयें
तुम्हारें लिए

१७-राहों पर फूल बिछा दे
घरौंदा प्यारा बसा
तुम्हारें लिए

१८- सूरज भले ही डूबा
हम नहीं डूबे
तुम्हारें लिए

१९-भागते शोहरत के पीछे
हम अडिग खड़े
तुम्हारे लिए

२० -बिछड़कर नहीं जिन्दा रहती
जिन्दा है हम
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

२१-मरू तो सुहागन मरू
चाहत है यही
तुम्हारें लिए

२२- राम राम कहते आई
मंदिर में बस
तुम्हारें लिए

२३-स्नान किया गंगा में
पापमुक्ति नहीं बस

तुम्हारें लिए

२४-आभार खेल क्यों खेलेगें
आभार देते हम
तुम्हारें लिए

२५-फायकु का नशा चढ़ा
हर कही दिखा
तुम्हारें लिए

२६-खोयी यादों में तेरी
आंसू बहाती बस
तुम्हारें लिए

२७-जग हँसा बस मैं रोई
ममता जागी बस
तुम्हारें लिए

२८-भैया की लाडली ठहरी
किया सब कुछ
तुम्हारे लिए

२९-पिता के आँखों का तारा
छोड़ा घर उनका
तुम्हारें लिए

३०-माँ के कलेजे का
टुकड़ा सब छोड़ा
तुम्हारें लिए


सविता मिश्रा

Wednesday 5 December 2012

$$ गम की आंधिया $$

gam ki aandhiya ujaad na de..
chaman tera dhaal banke sadaiv..
tum khadi rehna..
pyaar se seechna sakhaye apni..
samay ke thapedo mei murjaane mat dena..savita mishra


गम की आंधिया उजाड़ ना दे चमन तेरा
ढाल बन के सदैव खड़ी रहना...
प्यार से सींचना शाखाएं अपनी

समय के थपेड़ो में
मुरझाने मत देना .....
सविता मिश्रा

Saturday 1 December 2012

यूँ ही

फूलों से बहुत प्यार था पर काँटों से डरतें थे
फूल की चाहत में दिल में कई नासूर पलते थे

नासूरों का क्या करेगें अब सोच कर भी डरतें है
अब तो डर के मारे फूलों को भी दूर से ही परखतें है
...सविता

अहम्
====
हम झुके ना थे किसी के आगे
आज झुके तो टूट गए,
टूट कर बिखरे ही थे कि
लोग पैरों से रौंद चल दिए |
सविता मिश्रा

++त्यौहार क्यों मनाते हो ++

त्यौहार तो अब हम क्या कैसे मनाये
सब दिन तो सूखी नमक रोटी खा
ये|

फिर किसी तरह त्यौहार के खातिर पैसा जुटा
ये
थैला ले जरा बाजार हो अपना थैला भर आये|

सोचे इतने में सब कुछ खरीद होगें खुशहाल
घर वालों के ख़ुशी से होगें सुर्ख गाल लाल |

दाम पूछते ही सामानों के हम बैठे मन मार
 भारी-भरकम 
दाम अंटी पैसे थे बस चार |

घूमते ही रहे धन मुताबिक ना मिला माल
तब समझे इस मंहगाई में हम तो हैं कंगाल|

बस एक-दो समान मूर्ति सहित घर ले आये
पूजा पर बैठ प्रभु को अपना दुखड़ा सुना
ये|

वह बोले इतने में हम क्या दे तुमको मूरख
तुम तो अच्छे हो जो नहीं पा रहे हो दुःख|

उनसे पूछो जो इस मंहगाई में भूखो रहते
त्यौहार को छोड़ो रोटी को भी हैं तरसते|

दो जून की जो भी सूखी-रुखी पाते हो
उसी में खुश रहो त्यौहार क्यों मनाते हो|...सविता मिश्रा

Friday 30 November 2012

++माँ तो आखिर माँ होती है ++





नौ महीने तक हम तुझे,
कोख में छुपा के चले ,
दो वर्ष तक तो हम तुझे ,
गोद में उठा के चले ,
डेढ़ से दो वर्ष तो हम तेरी ,
हर अनकही को भी समझे|

फिर तेरी माँ की बस,
बोली सुन के हर्षे |
तेरे पहले कदम पर भी ,
हम ही बच्चे बन के उछले,
तेरे भूख प्यास कों भी समझे,
तेरे हर चाल ढाल कों समझे ,
तेरे हर प्रयत्न को शाबासी हम दिये,
सीख जायें तू तब तक उत्साहित तुझे किये|

पढ़ना लिखना तुझे सिखायें ,
चलना सही डगर बतायें ,
डगमगायें ना कही तू ,
हम हर समय सहारा बन तेरा रहे ,
और आज तू जब बड़ा हो गया ,
हमें ही तू अपना बोझ कह गया |

बुढ़ापा जब हमारा लगा आने,
तब एक भी दिन हम
तुझे लगे भारी लगने ,
पिछला सब कुछ भूल तुने ,
लगा अब तो दूसरों की है सुनने,
माँ तुझे अब लगी है खलने ,
हम से ही चला अपना पिंड छुड़ाने ,

छोड़ आया तू हमें ही वीराने,
माँ कहने में भी अब लगी तुझे शर्म आने |

फिर भी मैं तो माँ हूँ तेरी ,
तुझे लग जायें यह दुआ मेरी ,
तेरे बच्चे ना करे यह गत तेरी ,
पलकों पर रखे आदर करे सदा तेरी ||

|| सविता मिश्रा ||

Monday 26 November 2012

एक या दो नहीं तीन ..:)

१.....सहनशक्ति
============
हमारी सहनशक्ति को देखना चाहता था
दुःख पर दुःख दे वह परीक्षा ले रहा था
हम भी थे खड़े अडिग हो माथे शिकन ना था
तमतमाया बहुत थक हार चलता बना ..|| सविता मिश्रा ||

२....
नाम की इज्जत
============
भस्मीभूत हो जायेगा एक दिन
यह निरीह शारीर मेरा
नहीं चाहती करे कोई बखान
पर इज्जत से नाम ले मेरा |सविता मिश्रा


३...ठगी
========
जी रहे थे मौत के इंतजार में
मौत आयी पर धोखा दे गयी
उठा लिया किसी और को छोड़ हमें
जिन्दगी छोड़ो मौत से भी मैं ठगी गयी |
|| सविता मिश्रा ||
ji rahe the mout ke itajaar me
mout aayi par dhokha de gayi
utha liya kisi our ko chhod hame
jindagi chhodo mout se bhi mai thagi gayi|
+++savita mishra+++

Saturday 24 November 2012

मन की

१..उपाय
-----------

ओंठो को सिल लिया है अब हमने
कि कहीं राज जख्मों का खोल ना दूँ
आँखो को अब कर लिया है सुनी हमने
कि कहीं गम के समुन्दर का ना दीदार हो
ठूंस ली हैं रुई अब हमने कानों में
कि कहीं किसी के व्यंग से ना आहत और हो
चेहरे पर अब हमने डाल दिए हैं परदे
कि कहीं सुरत से अपनी दर्द को न जाहिर कर दूँ |
++सविता मिश्रा ++
कटु शब्द
======
स्नेह से लबरेज समझ कर आये थे
आपने ही कटु शब्द कह लौटा दिया
अपना समझ कर आये थे दर पे तेरे
बेगाना समझ तुने हमे भगा दिया ..सविता

Tuesday 20 November 2012

==जमाना ठगा देखता रहा==

जमाना ठगा देखता रहा,
और हम धूँ-धूँ कर जल उठे|
आग के लपटों से घिरी,
उप्पर से लोहे कि तपिश |
अपने ही कपड़ो में सिकुड़े ,
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |

हो गयी गोधरा की पुनरावृत्ति,
फर्क बस इतना सा रहा,
वहाँ गद्दारों ने नफ़रत की चिता सजाई ,
परन्तु यहाँ अपनो ने ही की लापरवाही|
हुआ जो हादसा कि
इंसानियत उठी चीत्कार
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |

चिता पर हमारी न जाने कितनों की,
सिंक गयी रोटियाँ ...
कहीं खुली रेल की पोल,
तो कहीं रेल मंत्रालय की|
राजनितिक पार्टिया तो
हो गयी बल्ले-बल्ले |
एक दूसरे की सभी
टांग खिंचते रह गये|
हमारी फिक्र किसी को कहाँ
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |

समाचार-एजेंसिया समाचार,
पहले बताने की होड़ में लगी |
कवि कविता बनाने चल पड़े,
राजनीतिज्ञ कुर्सी डिगाने पिल पड़े |
हमारी है किसे खबर
हम तो !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |

चिता सजती है लकड़ी की
हमारी तो लोह सैया सज गयी |
सोये थे लेकर मीठे-मीठे सपने ,
खुली आखँ तो,
अपनी ही जलती चिता मिली|
दुनिया ठगी देखती रह गयी
और हम !
हम धूँ-धूँ कर जल उठे |

कितनों ने की बचने की हाथा-पाई,
कर करुण-क्रंदन भगवान बुलायें |
परन्तु भगवान भी ना आ सका,
हम तुच्छ प्राणी जल गये|
दुनिया ठगी देखती रही
और हम !
हम तो धूँ-धूँ कर जल उठे |
+++सविता मिश्रा +++16/5/2003

Monday 19 November 2012

स्वकथन

     १...पत्थर को भगवान् बनाने वाला इंसान होता है, पर इंसान खुद को इंसान बना पाने में असफल रहता है ..क्योकि पत्थर को तराशना आसान है, खुद को मुश्किल..सविता मिश्रा
२...औरत के पास ताकत है पर वह उसका इस्तेमाल सहने में करती है, जिस दिन भड़क गयी हिम्मत नहीं किसी पुरुष में ..मरेगी तो अवश्य पर मार कर एक दो को....सविता


३ ....कौन क्या पहनता है क्या खाता है क्या पिता है क्या मतलब है पर नहीं दूसरों के गिरेबान में झांकने की बुरी आदत जो है कैसे सुधरें .....सच्चाई भी हजम नहीं होती लोगों को बस बैल की तरह सिंग उठाई और मारने लगे बिना समझे बिना बुझे ........वैसे आवारा पशुओं की तादाद बढती जा रही है ..है ना ..उपाय तो है पर कारगर शायद नहीं ...सविता ...
असभ्य लोग कृपया दुरी बनाएं रक्खे इस पोस्ट से ........शुभ संध्या आप सभी को

कुछ यूँ ही

१....माना हम सूरज है पर चाहत नहीं उसकी तरह ख्याति पायें
दीपक बन भी यदि रोशन कर सकें जहाँ तो खुशनसीबी होगी अपनी
...सविता
२...सूरज से आंख मिलाने की धृष्टता कर बैठे थे कभी
उसने छट से हमे हमारी औकात दिखा दी थी तभी ..सविता मिश्रा


३..हमारी हर लेखनी पर क्यों बवाल कर देते हो
खामख्वाह हम पर ही क्यों सवाल कर देते हो ...सविता मिश्रा

४..
मुठ्ठी कस कर भींच रक्खी थी हमने गुमान था रिश्तों को बांध रखा हैं
पर रिश्तें एक-एक कर फिसलते गये रेत से मुट्ठी को लहुलुहान करके| सविता

५...
हम चुप है तो मत समझो तुम हमें कमजोर
चंडी बन गएँ तो बनना होगा तुम्हें रणछोर ....सविता

रेगिस्तान में नखलिस्तान ही ////मजबूर न थे


१...क्या बना भेजा था
प्रभु ने इह लोक

हम क्या बनते जा रहे है
किकर्व्यविमुढ हो
इधर उधर भटकते

रेगिस्तान में नखलिस्तान ही
ढूढ़ते खुद को पा रहे है
...
..
. सविता

२....हम तो हम थे
पर अब जो तुम हो
वह पहले तुम ना थे
कैसे समझाए
हम खुद को
पहले कभी इतने
मजबूर न थे|सविता मिश्रा

~ फरेब को हकीकत समझते आ रहे है ~

जीना था जिए जा रहे थे
ना कोई उद्देश्य ना कोई चाहत थी

लोगों की भीड़ चलती
जिधर
चल पड़ते हम भी उधर ही

थे
उद्देश्य हीन
करना
क्या था
क्या किये जा रहे थे|

मौत भी दस्तक दे लौट गयी
कई बार दरवाजे से हमारे

पीना था जहर
पिये जा रहे थे
लोगों के ताने
सहे जा रहे थे|

ख्वाब में ही
यह बदरंग दुनिया
 
बड़ी सुहानी सी लगती है 

हकीकत में तो जुल्मों सितम से
भरपूर डरावनी लगती है|

हर शख्स बेगाना सा लगता है
पर फिर भी अपना कह

खुद को ही धोखा दिए जा रहे है|
धोखे में ही जीने की आदत हो गयी है
अब तो
हर हकीकत को फरेब और
फरेब को हकीकत समझते आ रहे है |..
.सविता मिश्रा

### मिल ही जाता है###

जीना है तो .....
जीने का बहाना
मिल ही जाता है,
डूबते हुए को....
तिनके का सहारा
मिल ही जाता है,
अकेले रहना चाहो तो...
भीड़ में भी अकेले
रहने का ठिकाना
मिल ही जाता है,
ढूढ़ना चाहो तो...
 बेगानों में भी
कोई अपना सा
मिल ही जाता है,
दिल में भक्ति हो तो...
पत्थर में भी भगवान
मिल ही जाता है,
पाना चाहो तो ....
माँ-बाप में ही
चारो धाम
मिल ही जाता है,
विद्वता दिखाना चाहो तो...
मूर्खो का कारंवा
अपने ही आस-पास
मिल ही जाता है,
मिलना हो तो...
 गुदड़ी में भी “लाल”
मिल ही जाता है,
किस्मत अच्छी हो तो ....
वीरानों में भी
कोई गड़ा खजाना
 मिल ही जाता है,
पारखी नजर हो तो....
 कंकड़-पत्थर में भी
“कोहिनूर” हीरा
मिल ही जाता है,
ज्ञान पाने की
 अभिलाषा हो तो....
ज्ञानी क्या
मूर्खो से भी ज्ञान
मिल ही जाता है,
मौत लिखी है यदि
किस्मत में हमारी तो ....
उसे भी
कोई ना कोई बहाना
मिल ही जाता है||..
.सविता मिश्रा


Monday 12 November 2012

&हूनर की कीमत&


इन झुग्गी झोपड़ी की जगह काश हम इनके लिए //////
एक कमरे का ही सही घर बना पाते///////
काश इन बेसहारों के जीवन में सहारा बन पातें/////
यूँ ही मुस्करातें हुए चेहरे को //////
अपने कैमरे में उतार पातें पर अफ़सोस/////////
यह तो कुछ पल की हंसी थी जो हमें /////
अपने सामने पा चेहरे पर जगी थी////////
वरना अँधेरे में तो जीने की आदत है इन्हें /////
छोटी छोटी खुशियों में ख़ुशी ढूढ़ ही लेते है //////
हूनर बाज है अपना हुनर बेचते है////
पर हुनर का खरीदार कहा है यहाँ///////
सड़को पर हुनर बेचने वाला तो/////
दो जून की रोटी को भी तरसता है//////
और शोरूमों में हुनर अनमोल हो बिकता है //////


हुनर की कीमत यदि इनकी भी लगने लगे /////
तो हम इन्हें दया दृष्टि से नहीं /////////
बल्कि ये हमें देखते नजर आयेगें//////
और एक कमरे का घर छोड़िये  /////
 महलों में हम इन्हें पायेगें ..
.सविता मिश्रा

Saturday 10 November 2012

# कंधे का सुकून #


तू कभी मेरे कंधे पर
सर रखा करता था,
आज हमें तेरे
कंधे की जरुरत पड़ी है।

नारी भी क्या अज़ब किरदार है
उसे कंधे की जरुरत पड़ती ही है,
इसलिए नहीं कि वह कमजोर है
बल्कि इस लिए कि
उसमें प्यार का भण्डार है
कितने भी कंधो पर सर रखे
परन्तु प्यार है कि
ख़त्म होता ही नहीं
बल्कि बढ़कर
दूना चौगुना हो जाता है।

कभी पिता के कंधे पर सर रख हुई बड़ी
पिता से अभूतपूर्व लगाव हुआ
फिर पति के कंधे पर सर रख जवानी बिताई
जीवन भर साथ निभाने की कसम खाई
अब बुढ़ापे में बेटे के कंधे पर
सर रख सुकून पाई
जिसको अपने कंधे का
देकर सहारा
खुद ही इस लायक बनाई |...सविता मिश्रा

Tuesday 6 November 2012

शब्द बाण

   १..    शब्दों के तीर================

शब्दों के तीर बड़े जालिम होते है
दिल में जा सीधे घाव करते है
नश्तर से चुभे शब्द बाण तुम्हारे
क्या करें हम अब भूले न भुलाये....सविता मिश्रा

२...व्यंग बाण
========

जिगर के  टुकड़े चार करें
आँसूओं  की भी भरमार करें

भरता नहीं
फिर भी उसका जिया
व्यंग बाण कर वह फिर प्रहार करें | ..
सविता मिश्रा



३...कुटिल चाल
===========
क्यों ऐसा है प्यार भरा रिश्ता भी मकड़जाल में फंस जाता
शब्दों के कुटिल चाल से
दिल को बहुत ही आघात हो जाता |...सविता

@आंसू @

दिखावटी अश्रु
============

जो मेरे मरने का
इंतज़ार किये बैठे हैं
देखना
दिल उनका
भले ही खुश हो
आँखों में आंसू ही होंगे,
मेरे मरने का
गम किसे है
ये जालिम जमाना
यह तो महज दिखावटी
अश्रु ही होंगे
बस |
++सविता मिश्रा ++
२..गम के आंसू
==========
फूल चुन-चुन हमने भी बिछायें थे
गम के आंसुओ को अपने छुपायें थे
दुख ना हो किसी बात से हमारी
 बड़ी मुश्किल से मौन रहना सीख पायें थे|सविता मिश्रा






### रिश्ता ###

१...आगोश
=========
मुस्कराहट भी अब दूर हो रही
जैसे चेहरे से हमारे
उदासियां खड़ीं बाहें फैलाये हमें अपने आगोश में लेने के लिए ..सविता


२...प्यार के दो बोल
=================

प्यार के दो बोल बोलता था कोई जेहन में शहद सा घोलता था कोई
ना जानें क्यों अब क्या हुआ ना वह बोलता ना हम ही बोलतें ...सविता मिश्रा

३..रिश्तों के रंग
=============

रिश्तों से करते रहे बहुत ही जंग
आज हमारे दिल हो गये जरा तंग|
रिश्तों के रंग आज बदरंग हो गये
चलता नहीं कोई दो कदम भी संग| सविता

## कुशन ##

 कुशन है तकिये की छोटी बहन
पर उपयोगिता तनिक भी नहीं है कम
सोफे पर सजी बहुत ही सुन्दर लगती
सुन्दर से सुन्दर लिहाफ से ढकी रहती
मेहमान आये तो ले गोद में बैठ जाये
या फिर पीठ को टिका तनिक आराम पायें

बच्चे आपस में जब लड़ने लग जाये
फेंक
एक दूजे पर कुश्ती में जुट जायें
बेचारी चुपचाप सारे जुल्मों को सह जायें

भाई तो गम के आंसू छुपायें और बहन
लड़ाई लड़ने और मारने के काम आयें

बच्चे जब एक दूजे पर फेंक थक जायें
फेंक कुशन को इधर-उधर ही चल जायें
बेचारी अपनी बेबसी पर आंसू बहायें
भाई तकिये से मिल अपना दुःख बता दुखी हो जायें ...
सविता मिश्रा

Monday 5 November 2012

# क्या अपने ऐसे होते है #

सारी शाम हम यूँ ही बस
दुखी हो रुदन ही करते रहे|

अपनों से लगे अपने घाव को
अपने ही आंसुओ से धोते रहे|

पर घाव थे कहा बाहरी हुए
वह तो दिल पर थे किये हुए|

आंसुओ ने धोया तो नहीं
और भी गहरा कर दिया|

गुस्सा भी था मन में बहुत
क्यों कर दिल से लगा लिया|

क्यों कुछ अधिक हमने
उनसे अपनापन जताया|

क्या अपने ऐसे होते है
बात बे बात दिल पर घाव देते है| .....
सविता मिश्र

Sunday 4 November 2012

## तकिया ##


तकिया भी बड़ी कमाल की चीज है
ना जाने कितने राज छुपा जाती है
होती तो सर के नीचे लगाने को पर
ना जाने कितने दर्द को भी समेटे रहती है
ना जाने कितने आंसुओ को शोख लेती है
दुखी दिल को छुपाने की ओट होती है
दर्द की भी गवाह होती है यह तकिया
खुशियों की भी गवाह होती है यह तकिया
तकिया की भी अपनी एक अलग कहानी है
कोई छेड़े नहीं नहीं तो राज खोल ही देगी
राज़दार है कितनी ही ग़मगीन रातों की
जो किसी की याद में रो रो कर बीते है |
  
 सविता मिश्रा

#### सत्य कब मीठा लगा ####


लिखो सत्य ही लिखो
भले ही वह थोड़ा कड़वा हो
सत्य कब किसे मीठा लगा
सुनने में बड़ा ही अटपटा भले लगे
पर सत्य पर असत्य ही भारी पड़ा है आज
असत्य को महत्व दे रहे है जो
सत्य को कैसे बर्दाश्त कर पायेगें
फिर भी बेधडक हो बिंदास लिखो आज
सहज हो सत्य का ही उजास लिखो
यकीन है हमें असत्य पर सत्य
विजयी ही होगा भले थोड़ी देर से सही .....| सविता

बस यूँ ही ....सविता

++मैं तेरे स्वागत में क्या गाऊ++



मैं तेरे स्वागत में क्या गाऊं रे ,

तुझ पर तो जाये कोयल भी वार ,
करूँ कौन से शब्द इस्तेमाल रे ,
तु तो है शब्दों का भण्डार |
मैं तेरे स्वागत में करूँ  क्या आज ,

तु तो है सभी का सरताज ,
तेरे लिए फिखा पड़ता है ,
मेरा यह स्वर्ण तख्तों ताज |
मैं तेरे स्वागत में कैसा दीप जलाऊ रे ,

तु तो स्वयं ही है प्रकाश ,

सूर्य कों दीपक दिखाऊ रे ,
मैं तो मन का दीप जलाऊ रे|
मैं तेरे स्वागत में फूल बिछाऊ रे ,
तु तो है फूलों से भी कोमल ,
फूल भी चुभ ना जाये कही ,
मैं अपना आँचल बिछाऊ रे |
||सविता मिश्रा ||

२८ /११/१९८९