Tuesday 30 October 2012

जिन्दगी की डगर



जिन्दगी की डगर 
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जिंदगी की डगर चलती है किधर
पता नहीं है किसी को मगर
फिर भी चलना है पड़ता
चाहे कितना लम्बा हो रास्ता
रास्ते में लगती है ठोकर बहुत
बिछे होते है कांटे अनगिनत

कांटे बिछे रास्ते भी हो जाते है सरल

मिल जाता साथी साथ जो दो पल
दो पल भी होगा तेरा अनमोल
मिल ही जायेगी मंजिल
जिंदगी की डगर तब खुद-ब-खुद
 

दिखाएगी रास्तें फूल भरे

||सविता मिश्रा ||


Sunday 28 October 2012

चैन से जीने के लिए सहनशीलता चाहिए

नारी जब दुर्गा रूप धर तुमसे लेने लगेगी इंतकाम
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चैन से जीने के लिए, जो सहनशीलता चाहिए
वह तो तुम में है ही नहीं, तो कैसे जिओगे
तुम तो चाहते हो कि घर वाली बस
घर में पड़ी रहे, एक वस्तु की तरह
ना सुने-बोले कुछ भी, मूक-बधिर हो जाए!

तुम गुलछर्रे उड़ाओ बाहर
पी-पाकर घर भी लाओ
ना बोले वह तो नाको चने चबवाओ|

तुम चाहते हो
हर वक्त तुम अपनी मनमानी करो
घर बाहर रासलीला करो
और पत्नियों से कहो, तुम मौन रहो !
एक कोने में जैसे पड़ी हो, बस यूँ ही पड़ी रहो|

पत्निया व्रत रखती है कि तुम्हारी उम्र बढ़े
तुम तो वह भी नहीं कर सकते!
चाहते हो, जल्दी मरे दूजी ला बैठाये
तुम्हें तो ना बच्चों की फिक्र है, ना पत्नी की
फिर भी कहते फिरते हो कि चैन से नहीं जीते हो!!

क्या कहें .........
पत्निया ने ही सर आँख चढ़ा रक्खा है
वर्ना सच में नहीं जी पाते चैन से
जैसे नहीं जीने देते पत्नियों को चैन से
खुद भी उसी तरह बेचैन रहते
जैसे पत्निया तुम्हारे लिए रहती है
हर वक्त
न समय से भोजन पाते, न कोई ख्याल रखता
हर चीज तुम्हें तुम्हारे हाथ में ले आ प्यार से देता
और न तुम्हारे घर लौटने की राह देखता|

घर बाहर तुम्हारी लाठी बन तुम्हें
निकम्मा कर दिया है पत्नियों ने ही
पत्नियों के कारण ही सम्मान पाते हो
इहलोक और परलोक में भी
फिर भी उन्हीं को
सरेआम यूँ कह, बदनाम करते हो |

सविता की सुन लो यह आवाज
न यूँ समझो नारियों को
घर की सज्जा का सामान
वर्ना एक दिन पछताओंगे
जब नारी दुर्गा रूप धर
तुमसे लेने लगेगी इंतकाम |
+++ सविता मिश्रा +++

भाग्य-विधाता~

किस्मत जहाँ भी
ले जायेगी
जायेगें हम वहीं

दाना लिखा है
जहाँ का
खायेगें हम वहीं

मौत की दस्तक
होगी जहाँ भी
बुलायेगा वह वहीं

आदमी तो
कठपुतली है
जहाँ घुमायेगा वह
घूमेगा वो वहीं

जहाँ चाहते है प्रभु
चल देते हम वहीं
भाग्य-विधाता है वह
हम तो कुछ भी नहीं |

|| सविता मिश्रा 'अक्षजा' ||

२८ /११/१९८९

~ जिंदगी ~

जिंदगी
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ओ जिन्दगी तेरे नखरे
सहते सहते जब थक जायेगें
यूँ कुछ कर गुजर जायेगें
कि तुम अवाक स्तब्ध रह जाएगी
फिर भूले से भी हमें ना रुलायेगी ...सविता मिश्रा

Friday 26 October 2012

जिंदगी
++++++++++
दिल जब कभी बहुत
उदास हो जाता है तो
यूँ ही कुछ भी उटपटांग ही
दिल कह जाता है
पर बर्खास्त न कर पाओगें
जिंदगी को कभी भी
जब कभी करने पर आओगें
मोह माया में फंस ही जाओगें |सविता मिश्रा

Wednesday 24 October 2012

*जैसे को तैसा *


दूजे की बहन-बेटी के साथ
करें हंसी-ठिठोली
अपनी रखे छुपाय|
हद तब होई जाय
जब कोई फूहड़ता-पन
पर उतर आय |
अपनी बहन बेटी को
कोई भी बोले
अतिशीघ्र खून खौली जाय |
दूजे की बहन लगे देखने
आँख टिकाय
अपनी को रखे
दूजो से बचाय|
कब तक ऐसा होए
कभी तो सेर-पर सवा-सेर
मिली ही जाये|
तब मुहं ताकत बैठे रहे
अपनी गलती पर खूब
पछताय |
हाथ तब सर पर दे मारे
जब जैसे को तैसा
कहीं  मिली जाय |
||सविता मिश्रा||

Monday 22 October 2012

~दिल का घाव नासूर बना~

उफ़ अपने दिल की बात बतायें कैसे
दिल पर हुए आघात जतायें कैसे|

दिल का घाव नासूर बना
अब मरहम लगायें कैसे
कोई अपना बना बेगाना
दिल को अब यह समझायें कैसे|

कुछ गलतफहमी ऐसी बढ़ी
बढ़ते-बढ़ते बढती गयी
रिश्तें पर रज जमने सी लगी
दिल पर पड़ी रज को हटायें कैसे|

उनसे बात हुई तो सही पर
बात में खटास दिखती रही
लगा हमें ही गलत ठहरातें रहे
बातों ही बातों में खुन्नस दिखाते रहे
उनकी बातें लगी बुरी हमें पर
दिल पर अब पत्थर रख पायें कैसे|

पत्थर रख भी बात बढ़ायें हम
अपनापन भी खूब जातयें हम
दिल में टीस सी उठती रही
मन में लकीर पड़ती गयी
अब उस लकीर को हटायें कैसे
दर्दे दिल समझाता रहा खुद को
पर इस दर्द को मिटायें कैसे|

अपनों ने ही ना समझा हमें
गैरों की क्या शिकवा करें
सरेआम घमंडी साबित किया हमें
हर अवगुण को ही उसने देखा हममें
दुःख हुआ बहुत ही दिल को
फिर बताओं हम दिल को बहलाए कैसे||

सस्ता हुआ आदमी


|
सस्ता हुआ बस आदमी
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सब कुछ महँगा हुआ है
सस्ता हुआ है तो बस आदमी|
आदमी का कल-पुर्जा हुआ महँगा
सस्ता हुआ है तो बस आदमी|
खून दो सौ से चार सौ में ब्लैक होता है
डोनर तो अक्सर यहाँ पर हैक होता है |
किडनी लाख दो लाख में भी न मिलती है
आँखों की कीमत कानों को बहुत खलती है|
दिल भी यहाँ अनमोल हो बिक जाता है
मोलतौल सुनकर दिमाग पंगु हो जाता है |
कोई भी अंग शरीर का लगवाने चलो तो
तीन-चार लाख खर्च करना ही पड़ता है|
परन्तु यदि कुछ सस्ता हुआ है
तो वह है जान-ए-ईमान आदमी |

कौड़ियो के भाव में बिक जाता है
दस रुपये के तेजाब से मिट जाता है|
बीस रुपये के मिट्टी के तेल से जल जाता है
दो रुपये के लिए भी मर मिट वह जाता है|

सब कुछ बहुत महँगा हुआ है,
सस्ता हुआ है तो बस आदमी||
दाल-चावल, साबुन-तेल
दवा-दारू,बाजारू खेल|
और तो और सिर छुपाने का
ठिकाना हुआ बहुत ही महँगा|

यहाँ तक कि पानी भी हुआ अनमोल
सस्ता हुआ है तो बस एक आम आदमी|


आदमी के इर्द-गिर्द घुमती
हर चीज ही तो हुई है महँगी|
परन्तु सस्ता यदि कुछ हुआ है
तो वह है बस चमड़ा-ए-आदमी||
== सविता मिश्रा ==

---शान से जीयें है---

शान से जीये है शान से ही मरना चाहेंगे,
ना ही किसी के आगे झुकें है ना ही झुकना चाहेंगे |
जो गलत लगता है उसे गलत ही कहना चाहेंगे,
गलत को सही तो बिल्कुल ही नहीं कहना चाहेंगे|
मुहं लगता है जो उसका मुहं तोड़ देना चाहेंगे,
हमारें अहं को जो ठेस पहुचायें उसे छोड़ देना चाहेंगे |
मान करता है जो हमारा उसे ही सम्मान देना चाहेंगे,
अपमान तो हम बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे |
शान से जीयें है शान से ..................

माना कुछ बुराइयाँ है हमारे अंदर
परन्तु अब तो उसी के साथ जीना चाहेंगे ,
मौत आई तो मौत को गले लगा जिन्दगी को ठुकराना चाहेंगे |
प्यार से बोलता है जो उसके लिए मर-मिटना चाहेंगे,
थोड़ा भी आँख दिखाएँ तो आँख फोड़ देना  चाहेंगे|
जो अच्छा है उसके लिए वात्सल्य की देवीं बनना चाहेंगे,
बुरें के लियें तो हम काली बनने में भी देर नहीं लगायेगें |
शान से जीयें है शान से..............+++ सविता मिश्रा +++

==क्यों देखते हो नारी की सुन्दरता ==


हमारी हर लेखनी पर क्यों बवाल कर देते हो
                  खामख्वाह हम पर ही क्यों सवाल कर देते हो ...सविता मिश्रा


क्यों देखते हो नारी की सुन्दरता
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क्यों देखते हो नारी की सुन्दरता
नारी की सुन्दरता
उसका मेकअप उसका काजल
उसकी लहराती जुल्फों में
क्यों खोने की होती है लालसा
क्यों राह चलती लडकियों को
पलट-पलट कर बार-बार
अपनी घातक नजरें गड़ाते हो
क्यों पान करते हो उसका
सौन्दर्य अपनी नजरों से ही
क्यों सीटी बज जाती है तुम्हारी
राह चलती कुंवारियों पर
क्यों सड़कों पर चौराहों पर
शिक्षा-संस्थानों पर यहाँ तक की
ओ बेशर्म पुरुष अस्पतालों में भी
खड़े हो अपने को हीरो समझ
आती-जाती लडकियों पर
करते हो भद्दे-भद्दे कमेन्ट
क्यों तुमको लाज नहीं आती है
क्या तुम्हारी अपनी माँ बहन
उस वक्त नहीं याद आती है
तुम हर नारी में दुर्गा
सीता ,लक्ष्मीबाई, आपला,घोषा
को क्यों नहीं देख पाते हो
नजरों को बदलो नजरिया
खुद-ब-खुद बदल जायेगा
नारी सौन्दर्य की मूर्ति नहीं
विद्वता की खान दिखेगीं
तब सीटी बजाना भूल
हर नारी को प्रणाम करते नजर आओगें
यूँ चौराहों पर ताड़ते नजरों से नहीं
बल्कि कोई महत्वपूर्ण कार्य
करते खुद को पाओगें |सविता मिश्रा

ये नेता

दिखते है चुनाव के समय  नेता गण,
 बाद में किसी का अता न पता |
  आ जाते है लोग नेता कि बातो में,
 दे देते है अपना महत्वपूर्ण वोट|
नहीं सोचते वोट देने के बाद होगा क्या,
 ये नेता,नेता होंगे या सिर्फ गण |
 यमदूत होंगे या सिर्फ यमराज,
 न मालूम ये पद पाने के बाद होंगे क्या |
 चुनाव में  होती है जनता इनका परिवार,
 पूरा हिन्दुस्तान ही होता है इनका घर |
  पाने के बाद वोट रखते न किसी का ध्यान,
 बनाते रहते है अपनी ही बस शान |
लगते देखने में सज्जन बाते भी बड़ी भोली,
 पर अंदर से न जाने क्या है ये
       सज्जन, दुर्जन या
                           फिर कुछ और ||
            +++सविता मिश्रा ++++

Sunday 21 October 2012


जख्म 
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जख्म कौन सा कितना गहरा था
कैसे हिसाब बैठाये
जिस भी जख्म को याद किया
उसी को सबसे गहरा पाया |सविता मिश्रा

Saturday 20 October 2012

~ दंभ ~

कांटे कों फूल समझने की ,
भूल ना कीजिये ,
चूहे है आप अदना ,
                                                                               शेर का दंभ ना भरा कीजिये |              सविता मिश्रा

Thursday 18 October 2012

कौन कहता है हम भारतीय गरीब है विदेश में एक लड़की पर अपनी बोली लगा दुसरे स्थान पर क़ाबिज एक भारतीय ..........और भी कई भारतीय है जो अमीरी में विदेशी अमीरों के समझ खड़े है ......फिर भी गरीबी का रोना यदि अपने देश में जरा सा भी सहयोग दे दे तो नज़ारा कुछ और ही हो खैर वह तो एक अलग बात है .........कहना तो यह है कि अपने देश में तो अपने संस्कारो को भूल ही गए है लोग .......विदेशो में भी संस्कार विहीन होने का परचम लहरा ही दिया आखिरकार !!!!!!!!!!!!!!!!!!सविता मिश्रा

~मैं सूरज नहीं हूँ~

मैं सूरज नहीं हूँ कि ...
अपनी प्रकाश की किरणे बिखेर दूँ |
मेरा नाम अवश्य सूर्य का संबोधन है,
पर मैं सूरज नहीं हूँ |
अगर अपने नाम का थोड़ा
भी अंश होता मुझमें ,
तो मैं सारे भारत पर रोशनी बिखेरती |
अँधेरे में प्रकाश फैलाती ,
अन्धों को रास्ता दिखाती |
अगर अंधकार बस मार्ग भटकता कोई ,
तो मैं उसे अँधेरे से निकाल सही रास्ते पर लाती,
मगर अफ़सोस कि ..
मैं सूरज नहीं हूँ |
||सविता मिश्रा ||

~मत किसे दे~


आज मत किसे दे,
निर्णय नहीं कर पा रहे|
नेता के झूठे वादे ,
कड़वे जहर की तरह पिए जा रहे|

सफ़ेद पोश में रिश्वत-खोरी ,
काला-बाज़ारी,राहजनी ,
डकैती,भ्रष्टाचार हम ,
सहे ही जा रहे |
     हर तरफ बेकारी आक्रोश,
चीत्कार,भुखमरी ,
बस इसी में भारत को ,
सदियों से देखते आ रहे |

क्लब में कैबरे,डिस्को ,
अधजली सिगरेट,
पैग पर पैग,
हम पिए जा रहे है | 
नंबर दो की कमाई,
नही है कमाने में कठिनाई |
पैसे के बल पर हम,
इज्जत नीलाम किये जा रहे |

सभ्यता !
सभ्यता के नाम पर हम,
गुड-मार्निंग किये जा रहे |
हम अपनी ही संस्कृति को ही ,
गुलाम किये जा रहे |
तथा-कथित नेता शहीदों के ,
अमर बलिदान को ,
बदनाम किये जा रहे |
आज मत किसे दे,
निर्णय नहीं कर पा रहे ||
||सविता मिश्रा|| २०/११/८९




ख़ामोशी
++++++++++++++
ख़ामोश है हम
इस लिए नहीं कि
ख़ामोशी हमें पसंद है
बल्कि इस लिए कि
अब यह अपनी मज़बूरी है ....सविता

~कुछ भुला भटका सा~


आज दिल कर रहा है
कुछ याद करूँ
अपने ही
भुले-भटके हुये
गुनाहों को
खुद से ही फ़रियाद करूँ
जो गुनाह किये
आखिर क्यों किये
जो फल भुगता
वह
किस गुनाह का था
कुछ चिंतन करूँ
कितने बड़े गुनाह की
कितनी छोटी सजा मिली
कुछ तो था रहम प्रभु का
कुछ तो उसको मै
इसका धन्यवाद करूँ
क्यों कोसू किसी को
ना कुछ पाने पर
जो पाया है क्यों ना
उसका धन्यवाद करूँ
आज दिल कर रहा है
कुछ तो भुला भटका सा
याद करूँ |
|| सविता मिश्रा |२८/४/२०१२
+++======प्रेरणा =====+++
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
आपकी प्रेणना से अकिंचन हम कुछ तो सीख लेगें ,
आपकी निंदा में भी हम प्रसंन्सा को देख लेगें |
आपकी तल्ख़ भाषा में भी हम विनम्रता को पढ़ लेगें ,
आपकी बुराई से भी हम अच्छाई को सीख लेगें |
||सविता मिश्रा ||
१२/१२/२०११

~ महान वह है ~


महान वह है जो स्वयं पर ,
फेंके गए पत्थर को फूल समझ ले,
स्वयं पर किये व्यंग को ,
धूल समझ चरणों से रोंद ले |
महान वह है जो बड़े से बड़े ,
आक्षेप को संक्षेप कर ले ,
नफ़रत में कहे शब्दों में ,
प्यार को पढ़ ले |
महान वह है जो स्वयं की ,
बुराई सुन कर हंस ले ,
बुराई को ही अच्छाई की ,
माला समझ धारण कर ले |
महान वह है जो बुरे व्यक्ति को भी ,
अच्छे का नाम दे ले ,
बुराई में ही अच्छाई की ,
प्रतिछाया देख ले |
महान वह है जो स्वयं को ,
दूसरों से छोटा कर ले ,
आप ही है भले ऐसा ,
मान कर चले |
महान वह है जो दरिद्र के भी ,
लग जाये प्यार से गले ,
और कहे आप महान है ,
और हमसे भी है भले |
महान वह है जो नहीं ,
किसी की प्रगति से कभी जले,
स्वयं को उसका ,
प्रसंशक बना कर चले |
महान वह है जो प्यार का ,
चिराग जलाकर चले ,
नफ़रत पर प्यार का ,
मरहम सदा मले |
महान वह है जो नहीं ,
अपनी महानता पर मचले,
अज्ञानी को भी अपने ,
समझ समझ कर चले |
||सविता मिश्रा ||
३०/३/१९९९







ऐसा कौन है जिसे जमाने ने बुरा नहीं कहा है ,
 अगर है कोई तो उसने ही ज़माने कों बुरा कहा है |सविता मिश्रा

Wednesday 17 October 2012

~कृपा बरसा जाना ~

धर्म विरुद्ध ना चले कभी हम
 मार्गदर्शन मैया तू सदा करती रहना ...
 हम तो तेरी ही संतान है
करम सदा हम पर बनाये रखना ..
माना मानुष तन में रह हम खुद पर
 गर्व कर बैठते कभी
 
कभी इतरा जाते है ..
तू तो सर्वव्यापी, सर्वशक्तिशाली हो तुम
जगतजननी और पालन हारी भी हो मैया ....
नादां-सा बालक समझ तू 
 क्षमा कर हमको अपना बना लेना ....
भटक गये जो हम सत्कर्मों से अपने
 सच्ची राह हमें अवश्य ही दिखा जाना ...
मैया तू  कृपा अपनी हम सब पर
इस नवरात्रे अवश्य ही बरसा जाना ......सविता मिश्रा

Friday 12 October 2012

 

इज्जत से नाम ले मेरा
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भस्मीभूत हो जायेगा एक दिन
यह निरीह शरीर मेरा
नहीं चाहती करे कोई बखान
पर इज्जत से नाम ले मेरा |सविता मिश्रा
 
वंचक है यहाँ पर कई
बैठे घात लगायें
मन में राम कहते जायें
बगल में है छुरी लटकाए 


!! सविता मिश्रा !!