Wednesday 31 December 2014

विदा २०१४

दिन +हफ्ते +महीने कर कर के २०१४ का कलेंडर  बदल गया ....यदि कुछ नहीं बदला तो वह है इंसान का दिलोदिमाक ...नए से कोई ख़ास उम्मीद नहीं पर हा जैसे पिछले चार-पांच साल बिते  वैसे ना बीते तो अच्छा ....आगे हरी इच्छा
जीवन को उधेड़ बुन कर अच्छे -बुरे समय को समझना बड़ा मुश्किल हैं, हो सकता है बहुत से पल वो भी आये हो जो अमृत पान कराएं हो, पर वह पल किसे याद रहते है -हा गम के चाबुक कभी नहीं भूलते .....इन्ही चाबुको के बीच अपने और गैर का हम चुनाव कर लेते है...|

कोई गैर अपना बन दिलोदिमाग में घर कर जाये अच्छा लगता है| कोई बनना चाहे अपना तो भी अच्छा लगता है, पर अपना गैरों सा बर्ताव करें बहुत बुरा लगता है ...फिर भी समय के साथ हर रिश्तें पर धूल ज़मने देते है कभी रिश्तों पड़ी धूल साफ़ करने की भरपूर कोशिश करते है ......कुछ रिश्ते पर कोशिशें कामयाब होती है, कुछ पर नहीं ....समय फिर भी नहीं रुकता ...महीने साल बीतते जाते है समयानुसार ....कभी-कभी अथक परिश्रम कर हम खुद को ठगा सा पाते है ..कभी हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ा समय के साथ हो लेते है .....चलिए समय के साथ, सब कुछ समय पर छोड़  ...उप्पर वाले ने कोई तो समय मेरे लिय या आपके लिय भी बनाया ही होगा ..मूक बन उस समय का इन्तजार करिए ....बस निस्वार्थ कर्म करते हुए .....
वैसे तो निस्वार्थ कर्म करने को कहना बेमानी सा ही है क्योकि इस आज की दुनिया में कोई निस्वार्थ कहाँ हैं भला|

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया///हर व्यक्ति यदि ऐसी सोच रक्खे ऐसी प्रतिज्ञा कर ले तो, न गये समय के दुःख दर्द याद आये, न नये समय से आशंकित हो ...दुःख हो सुख हो अपनों के कंधे का सहारा मिलें तो भवसागर भला कौन नहीं पार कर लेंगा ...पर हम इसी उधेड़ बुन में रहते है कि किसने, कब,कैसा मेरे साथ किया उसे कब, कैसे गच्चा देना है ...बस समय अपनी राह हो लेता है और हम कष्ट में डूबते ही अपनों का साथ न पा तमतमा जाते है क्योकि अपने जो होते है वह कष्ट में कन्धा देने के बजाय अपनी ही उधेड़बुन में लगे होते है कि कब पैरो के नीचे से चादर खींची जाये |  ख़ुशी की सीढी कोई नहीं बनना चाहता है, सब गम की लिफ्ट बन जल्दी से जल्दी उप्पर पहुँचाना चाहते है| अपनों का साथ सभी को चाहिए होता है, पर कोई अपना साथ देने को तैयार नहीं होता|
वक्त  के साथ चलिए ,वक्त -वक्त पर मिलते रहिये, वर्ना वक्त यदि बित गया किसी तरह तो वह व्यक्ति खुद ही नहीं याद रखेगा कि आप किस खेत की मूली थे | क्योंकि वक्त एक न एक दिन घूमफिर कर सभी का आता ही हैं| :) सविता मिश्रा
बोलिए गणेश भगवान् की जय :) :D

Wednesday 3 December 2014

~इतना सारी समस्याएं लड़ें तो लड़ें कैसे ~

अदना सा आदमी कितनों से लड़ता फिरे | अपने विचारों से, परम्पराओं से, नियमों से, कानून से, विसंगतियों से, संगतियो से भी, अव्योस्थाओं से, झूठे आरोपों से, तकियानुसी विचार धाराओं से, एक अजीब ही ढर्रे पर चलती नियमों से, जो बदलना ही नहीं चाहती,सरकार से, भ्रष्टाचार से, महंगाई से, जिन्दगी से, मौत से भी, और तो और इन आकाश में घूमते पर अपने ही आसपास चालों की बिसात बिछातें इन ग्रह नक्षत्रों से ....|एक मामूली सा कमजोर आदमी और इतना सारी समस्याएं लड़ें तो लड़ें कैसे .....?

सब से यदि लड़ भी ले तो आखिर प्रारब्ध और उस अदृश्य शक्ति से कैसे लड़ें ...?
कभी कभी लगता हैं हार कर बैठ जाएँ एक कोने में, और सब कुछ उसके मर्जी पर छोड़ दिया जाएँ| सविता .............

Tuesday 2 December 2014

~हाइबन~

पहली हमारी कोशिश हाइबन लिखने की इधर आइये तो पढ़ अवश्य बताइए कैसी है यह अदना कोशिश ....आप सभी के इंतजार में मेरी यह रचना ...:)

ओह कितनी खुबसुरत तस्वीरें है| काश मैं भी घूम पाती ! इस नाव में, पतवार मैं चलाती और तुम बैठते| जिन्दगी की नाव तो तुम्ही खे रहे हो न | पहाडियों पर चढ़ के तुम्हारा नाम पुकारती| सुनती हूँ, एक बार नाम बोलो तो कई बार गूंजता है| मैं पूरे फिज़ा में तेरे नाम की ही गूंज बसा देती|
समुद्र की शांत पड़े पानी में डूबते सूरज की अरुणाई को निहारती रहती| स्वर्णिम आभा को अपने हृदय में बसा लेती हमेशा-हमेशा के लिय| सब कहते है कि स्त्रियों को स्वर्ण बहुत पसंद है पर तुम तो जानते हो न मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद| पर यह स्वर्ण आभा मैं अपने अंदर बसा सबको अलानिया बताती कि देखो, मुझे भी स्वर्ण पसंद है| सच्चा स्वर्ण बिल्कुल ख़ालिस, कोई मिलावट नहीं |
और तो और एक टका भी न लगेगा इस स्वर्ण को अपने शरीर पर धारण करने पर |
ये सुन रहे हैं न या फिर मैं बके जा रही हूँ| हू हा सुन रहा हूँ!उहू तुम भी न कभी तो मेरी बातें भी सुन लिया करो, घूमा नहीं सकते तो ना सही|
अच्छा दीदी आप बताये आप तो घूम के आई है ???
क्या बताऊ सवित ! जितना तुम तस्वीर देख बयान कर दी, उतना तो हम वहां देखकर भी महसूस नहीकर पायें| हा थक जरुर गये घूमते घूमते| देखो पैरो में सूजन अब भी हैं|
अरे दी आप भी ध्यान से देखिये इन तस्वीरों को सारी थकान दूर हो जायेगी| कितनी खुबसुरत शानदार तस्वीरें आप और जेठजी ने खिंचवाई हैं| देखिये जरा गौर से .......

मन लुभाती
हरियाली बिखरी
कृति निखरी|


पक्षी बन मैं
प्रकृति छटा देखूं
मनु से दूर| ..............सविता मिश्रा