ये सब खोखले शब्द मात्र है
इन शब्दों के झमेले में
जो कोई भी कभी पड़ा
अपनी दुर्दशा देख
पश्चाताप के आंसू रोया।
दुर्दशा को नजर अंदाज कर
कुछ विद्रोह के स्वर
फिर भी मुखरित हुए,
पर दबी जुबान में
आमने-सामने विद्रोह से
कतराते है लोग।
विद्रोही बनना
आसान बात नहीं होती है ...
कहीं -कहीं क्रान्ति की
उठती है आवाज
आग की लपटों सी
पर बड़ी जल्दी
ठंडी भी पड़ जाती है।
चिंगारी फिर भी
दबी रहती है,
राख के ढेर में
बस हवा देने भर की
देर होती है।
हवा देने वालों में
इतना दमखम नहीं होता कि
वह इस लपट को
दूर तक ले जा सकें
एक नया इन्कलाब ला सकें।
इस भटके हुए दूषित, शापित
समाज, देश में और खुद में भी
इन्कलाब लाने का साहस
हममें तो नहीं क्या आप में हैं ?
---00---सविता मिश्रा 'अक्षजा'
6 comments:
बहुत सुंदर !
अपने आप से बस लड़ते रहना है
ज्यादा से ज्यादा हवा से कह देना है :)
सुशील भैया नमस्ते ......शुक्रिया दिल से ....यही कोशिश जारी है
बहुत बढ़िया
sanjay bhai dhanyvaad apka
अब विद्रोह जरूरी है !!
सतीश भैया नमस्ते ...आभार आपका दिल से
Post a Comment