संगत -
तनुज अपनी बड़ी बहन की शादी के पांच-छ साल बाद उनकी ससुराल आया था| पता चला छठ पूजा के लिए सब पोखर की तरफ गए हैं| वह अपनी बहन से मिलने वहीं आ गया| छोटे से गंदे पोखर में छठ मैया की पूजा करने वालों की भीड़ लगी थी|
तनुज हतप्रभ होकर अपनी बहन को पूजा करते एक टक निहारने लगा| दीदी को पूजा में ऐसे मग्न देखकर वह बरबस ही पुरानी यादों में घिरता जा रहा था|
यह वही दीदी हैं जो कभी भी गंदे पानी में किसी को भी नहाते देखती थीं तो दस नसीहतें देने लगती थीं, खुद नहाना तो बहुत दूर की बात थी|
बुआ जब घर आ जाती थीं तब चप्पल पहनकर रसोई में जाने को मनाही हो जाती थी| तो दीदी रसोई में कदम नहीं रखतीं थीं| मंदिर के साफ़ सुथरे फर्श पर भी बिना चप्पल के पैरों को अजीब सा मोड़कर चलती थीं| माँ की हर बात पर दसियों तर्कवितर्क करतीं थीं|
'वही दीदी आज नंगे पैरों से इस कंकडों भरे रास्ते पर चलकर आई हैं| ऊपर से कीचड़युक्त तालाब में डुबकी लगाकर, इतनी देर से खड़ी भी हैं|' आश्चर्यचकित होकर बुदबुदाया|
दीदी पूजा निपटाकर भाई को देखकर खुश होते हुए जैसे ही पास आई|
तनुज अपनी चप्पल आगे करके बोला- "दीदी चप्पल पहन लीजिए, कंकड़ चुभेंगे पैरों में|"|
"नहीं बाबू, श्रद्धा और भक्ति की शक्ति हैं मेरे पास, चल लूँगी|"
तनुज आश्चर्य से बोला- "दीदी क्या है ये सब, आप और ये !!"
"पूरा नगर ही छठ का उपवास इसी तरह करता हैं| यह संगत का असर है बाबू।"
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(चित्र आधारित)
(चित्र आधारित)
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