माँ को मरे पाँच साल हो गए थे। उनकी पेटी खोली, तो उसमें गहनों की भरमार थी। पापा एक-एक गहने को उठाकर उसके पीछे की कहानी
बताते जा रहे थे।
जंजीर उठाकर पापा हँसते हुए बोले, ‘‘तुम्हारी माँ
ने मेरे से छुपाकर यह जंजीर पड़ोसी के साथ जाकर बनवाई थी |’’
‘‘आपसे चोरी! पर इतना रुपया कहाँ से आया था?’’
‘‘आपसे चोरी! पर इतना रुपया कहाँ से आया था?’’
‘‘तब इतना महँगा सोना कहाँ था! एक हज़ार रुपए तोला
मिलता था। मेरी जेब से रुपए निकालकर इकट्ठा करती रहती थी तेरी माँ। उसे लगता था कि
मुझे इसका पता नहीं चलता; किन्तु उसकी खुशी के लिए मैं अनजान
बना रहता था। बहुत छुपाई थी यह जंजीर मुझसे, पर कोई चीज छुपी
रह सकती है क्या भला!’’
तभी श्रुति की नज़र बड़े से झुमके पर गई, ‘‘पापा! मम्मी इतना बड़ा झुमका पहनती थीं क्या?’’ आश्चर्य
से झुमके को हथेलियों के बीच लेकर बोली।
‘‘ये झुमका! ये तो सोने का नहीं लग रहा। तेरी माँ
नकली चीज़ तो पसन्द ही नहीं करती थी, फिर ये कैसे इस बॉक्स
में सोने के गहनों के बीच में रखा है।’’
‘‘इसके पीलेपन की चमक तो सोने जैसी ही लग रही है,
पापा!’’
‘‘कभी उसे यह पहने हुए तो मैंने नहीं देखा। और वह इतल-पीतल खरीदती नहीं थी कभी।’
‘‘कभी उसे यह पहने हुए तो मैंने नहीं देखा। और वह इतल-पीतल खरीदती नहीं थी कभी।’
तभी भाई ने, ‘‘पापा ! लाइए सुनार को दिखा दूँगा’’ कहकर झुमका अपने हाथ में ले लिया।
बड़े भाई की नज़र गई तो वह बोला, ‘‘हाँ लाइए पापा, कल जा रहा हूँ सुनार के यहाँ, दिखा लाऊँगा।’’
बड़े भाई की नज़र गई तो वह बोला, ‘‘हाँ लाइए पापा, कल जा रहा हूँ सुनार के यहाँ, दिखा लाऊँगा।’’
दोनों भाइयों के हाथों में झुमके का जोड़ा अलग-अलग होकर अपनी चमक खो
चुका था। दोनों बेटो की नज़र को भाँपने में पिता को तनिक भी देर नहीं लगी।
बिटिया के हाथ में सारे गहने देते हुए पिता ने झट से कहा, ‘‘बिटिया! बन्द कर दे माँ की अमानत वरना बिखर जाएगी।’’
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2 comments:
ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई को सहज लिखा है ... और कितना सच लिखा है ...
आज के लालची होते इंसानो का कटु सच
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