Monday, 17 May 2021

संजीवनी (लघुकथा)




 दैनिक जागरण में छपी  लघुकथा पुनः सही तथ्य के साथ आप सबके बीच...😊 

संजीवनी (लघुकथा)

सविता मिश्रा 'अक्षजा'


इंटरनेट मीडिया पर घंटो बिताने के दौरान अचानक स्नेह ने कहा- “पापा, काश मुझे भी कोरोना हो जाता!”

“ओह, क्या कह रही हो बिटिया| भगवान दुश्मनों को भी न दें ये रोग| कितने लोग असमय ही दुनिया छोड़कर जा रहे हैं|”

“पापा, अस्सी परसेंट ठीक हो रहे हैं| मम्मी और आप भी तो अब बिलकुल ठीक हो गये हैं न!”

“हां, हां, ठीक हो रहे हैं, लेकिन लोग अपनी जान बचाना चाह रहे हैं और तू है कि पॉजिटिव होना चाह रही है!”

“पापा मैं लोगों की जान बचाना चाहती हूं|”

“गजब प्राणी है तू भी! बीमार होकर कोई किसी की जान बचा सकता है क्या?”

“हाँ पापा, ठीक होने के बाद प्लाज्मा देकर| आप तो लोगों को बस दुआ देना जानते हैं, प्लाज्मा देने में जाने क्यों डरते हैं!”

“अच्छा, अच्छा! ठीक है| चल लेकर चल मुझे अस्पताल, मैं प्लाज्मा देने को तैयार हूं| तुझे इस तरह नौटंकी करने की जरूरत नहीं है|”

उंगली पकड़कर चलाने वाला पिता बिटिया की हथेली थाम बच्चे-सा चल पड़ा था।

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