Monday 13 April 2015

सुरक्षा घेरा~

चार साल की थी तब से बाहर की दुनिया उसने देखी ही न थी। दस कदम का एरिया ही उसकी पूरी दुनिया थी। नजरें झुकाये लोग उसकी दहलीज पर आते थे और जेब ढीली कर चलते बनते थे। तेरह-चौदह साल की उम्र से यह जो सिलसिला शुरू हुआ फिर रुका ही कहाँपैंतीस साल उम्र होने के बाद भी। लोग कहते कि वह पूरे इलाके में सबसे खूबसूरत बला थी लेकिन फिर भी आसपास के मर्द उसे छेड़ने की गुस्ताखी नहीं करते थे।
कल ही मोटा सेठ दो गड्डिया दे गया था उसके 'नूरपर मरकर। उसी सेठ से पता चला कि मॉल में बहुत कुछ मिलता है।
"बगल में ही है तुम्हारे एरिया से बस कुछ ही दूरी पर।कह एक गड्डी और पकड़ाकर बोला- "कुछ नये फैशन के कपड़े ले आना।"
पर्स में गड्डी रखसज-धजकर अपने ही रौ-धुन में चल दी सुनहरी।
अपना एरिया क्या छोड़ा ..सारी निगाहें उसे ही घूरती नज़र आई। दो कदम पर ही तो मॉल हैबस घुस जाऊँ! ये लफंगे-भेड़िए फिर क्या बिगाड़ लेंगे मेरा। सोच कदमचाल तेज़ हो गयी उसकी।
लेकिन उसका ख्याल गलत साबित हुआ। हतप्रभ-सी रह गयी वह! जब एक दो नहींअपने अनेक ग्राहकों को उसने देखाजो अपनी पत्नी से नजरें बचाकर उसे घूरकर आह भरते फिर निगाहें चुराकर उसके बगल से अपनी-अपनी पत्नी के साथ निकल जा रहे थे। कई युवक उसपर फब्तियां कसते हुए गन्दे गन्दे इशारे करने लगे थे।
वह बदहवास-सी उस असुरक्षित दुनिया से उल्टे पाँव अपने सुरक्षा घेरे में लौट आई।
---००---
13 April 2015 नया लेखन - नए दस्तखत

No comments: