गहमर की धरती पर 8-9सितम्बर को अमृतवर्षा हुई ...आयोजन था 'अखिल भारतीय गोपाल दास गहमरी साहित्यकार सम्मेलन' जो की 'गहमर इंटर कॉलेज गहमर' जनपद गाजीपुर में हुआ। इस अमृतवर्षा का लाभ हम भी ले सके, यह हमारा सौभाग्य रहा..।
7 सितम्बर रात 2:15 पर ट्रेन पकड़े और भदौरा स्टेशन पर पहुँचे रात 11:30 बजे के आसपास। वहाँ पर अखण्ड भाई मिले फिर बाइक से उनके घर की ओर। कुल मिलाकर पूरे 22 घण्टे में पहुँचे गहमर की भूमि पर। जैसे-जैसे ट्रेन खच्चर हो रही थी वैसे-वैसे दिमाग में एक अजीबोगरीब डर बैठ रहा था। क्योंकि गाँव तो गाँव ही होता है कितना भी नामी-गिरामी हो या फिर मशहूर लोगों का ही क्यों न हो। शहरों की तरह सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें तो नहीं ही मिलती ऊपर से सड़क खराब है! जाने से एक दिन पहले ही हम सुन चुके थे। खाना-पानी करके बिस्तर पर पड़े फिर अगले दिन सुबह छः बजे उठ गए। सुबह नाश्ता-पानी करके कार्यक्रम स्थल का जायजा लेने पहुँच गए जो कि सड़क पार करते ही स्थित था। वहाँ बच्चों को भाला फेंककर अभ्यास करते हुए देखना भी अच्छा लगा।
कार्यक्रम थोड़ा देर से शुरू हुआ लेकिन देर आए दुरुस्त आए वाली स्थिति थी। गर्मी से बेहाल हुए जा रहे थे लेकिन अच्छा लगा सबको सुनकर। यह भी महसूस हुआ कि ऐसे आयोजनों में जाने पर ज्यादा शिष्टाचार निभाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए सामने वाला आदमी आपको पीछे और पीछे करने के चक्कर में हो जाता है...खैर देखते हैं कि हम आयोजनों में अपनी भागीदारी करते हुए कब तक शिष्टाचार न छोड़ेने की कवायद कर पाते हैं।
लघुकथा वाचन में हमने अपनी लघुकथा भी पढ़ी। फिर शाम को कवि सम्मेलन में कविता पाठ भी किया। औरों को सुनकर अच्छा लगा सबसे अच्छा तब लगता है जब कई लोग बिना देखे ही कविता या कथा-कहानियां पढ़ लेते हैं, एक हम हैं कि मुंडी पेपर से उठती ही नहीं।
वाराणसी के स्कूल से आई लड़कियों ने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी। डांस, गायन में कजरी, स्वागत गीत सब मन को लुभाने ले लिए पर्याप्त थे। और असम प्रदेश का डांस के तो क्या कहने, बेहद अच्छी प्रस्तुति रही वहां ले लोक-नृत्य की भी।
सैनिकों के गांव में एक से बढ़कर एक न जाने कितने मोती दिखाई पड़े....कुछ मोती हमारे हाथ लगे कुछ छिटक गए..उन सब ज्ञानियों के बीच खुद को खड़ा देखकर अभूतपूर्व खुशी मिली जिसे शायद शब्दों में बयान नहीं कर सकते हैं...दो-चार-दस से मिलने का साहस भी नहीं जुटा पाए हम...। श्रवण भैया ने नाम लेकर कहा था कि मेरा दोस्त है वहाँ मिलेगा लेकिन उन्हें सामने पाकर सिर्फ अभिवादन करके रह गए | परिचय न दिए न बात ही कर पाए। सबसे बड़ी खुशी की बात यह भी रही कि अयोध्या से शास्त्री जी आए थे जिन्हें शासन द्वारा दो लाख का पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई है।
हमें इस बात का बड़ा अफसोस है कि एक बुजुर्ग शायद उसी गाँव की कोई प्रतिभा थी, वह कुछ सुनाना चाहते थे..हमसे 'माता जी' कहकर बोले थे अपनी बात लेकिन. जब तक हम उनकी बात समझते तब तक कोई उनसे कह चुका था कि कार्यक्रम समाप्त हो चुका कल आके सुनाना बाबा..कल यानी दूसरे दिन वह दिखे ही न...!
सुबह कार्यक्रम स्थल पर भी एक लड़का जो एयरफोर्स में जाना चाहता था और कवि सम्मेलन में भाग लेता रहता है जैसा कि उसने बताया, उसने अपनी तीन चार कविता सुनाई थी । काश ऐसे ही उन बुजुर्ग का मान रखते हुए हम उनसे भी सुन लेते, कुछ जो वो बोलना-गाना चाहते थे और मोबाइल में कैद कर लेते। इससे उनका मान भी रह जाता और हमें भी पछतावा न होता, खैर।
पहली बार कवि सम्मेलन में भाग लेने का सुअवसर मिला , संस्थाओं के आयोजनों में, संकलन के विमोचनों में और आगरा की साधिका समिति की बैठकों में कविता-पाठ करते रहे हैं पर ऐसे बड़े-बुजुर्गों-ज्ञानियों के बीच मंचासीन होकर कवि सम्मेलन का अनुभव पहली बार लिया..पहले से हमने अपना नाम भी नहीं दिया था लेकिन वहाँ रमेश तिवारी भैया ने पूछा फिर हमारा नाम लिख लिया । सच में बड़ा अजीब लगा । शायद पहली बार ऐसे मंच की जमीन पर बैठने के कारण लेकिन बहुत सुखद भी लगा और जब श्री सतीश राज पुष्करणा अंकल ने कहा कि बढ़िया कविता थी, तो हमारी प्रसन्नता की सीमा का अंदाजा भी कोई लगा नहीं सकता है...😊😊
लघुकथा वाचन-कवि -सम्मेलन और सम्मान पाकर अपार खुशी तो हुई ही, मेजबानों के आथित्य-सत्कार से भी मन गदगद हुआ😊
गर्मी से बड़े बेहाल भले हुए लेकिन गंगा मैया और कामाख्या देवी जी का दर्शन करके कलेजे को बड़ी ठंडक पहुँची।
दूसरे दिन सुबह गंगा मैया की सैर हुई बीना बुंदकी दीदी के सिवा किसी ने गंगा में डुबकी नहीं लगाई बस फोटो-शूट करने में लगे रहें। उसके बाद कामाख्या माँ के दर्शन करने पहुँचे सब..वहाँ भी मैया के दर्शन और फोटो-पे-फोटो लिए गए..कई जनों से उधर वार्ता भी हुई। फोटोग्राफर से ग्रुप फोटो निकलवाई गयी जिसे लगभग सबने ही लिया, वह भी खुश हो गया होगा। फिर वहाँ से लौटकर नाश्ता किया गया। नाश्ते में लीट्टी बनी थी जो की न जाने कितने साल बाद खाई हमने। वार्तालाप और नाश्ता करने के बाद कार्यक्रम स्थल का रुख किया गया।
सम्मान पाकर किसे नहीं खुशी होगी अतः हमें भी 'पंडित कपिल देव द्विवेदी स्मृति सम्मान' (समाज सेविका क्षेत्र में ) पाकर बहुत खुशी हो रही है...एक जन ने कहा था कि सविता तुम कब से सेविका बन गयी तो हमारा जवाब था कि हम भारतवासियों के मूल में ही सेवा भाव है । विरला ही ऐसा कोई भारतवासी होगा जो जो भारतीयता के इस गुण से वंचित होगा। कुल मिलाकर गहमर की धरती पर आकर अपार खुशी मिली, इस महाकुंभ में आकर गंगा जल की कुछ बूंदें अवश्य ही अपने दिमागी कमंडल में आ पहुँची होगी और हम भी साहित्य के पथरीली जमीन पर चलने की कोशिश कर पाएंगे।
एक दो मोती ऐसे भी दिखे जिनकी चमक हमें आकर्षित न कर सकी ...फिलहाल मोतियों की माला के एक-एक मोती जो हमारे मोबाइल की गैलरी में गूंथे हुए हैं उन सबको उनके नाम के साथ पहचानने की कवायद जारी है...😊
आयोजन में हमें 'कपिल देव शास्त्री सम्मान' से सम्मानित करने हेतु जजों की टीम और अखंड गहमरी का धन्यवाद- कविता पाठ और लघुकथा पाठ के लिए मंच प्रदान करने क लिए भी आभार 😊😊
चाक-चौबंद व्यवस्था के लिए अखण्ड गहमरी भैया और उनके परिवार की प्रशंसा तो करना बनता है उनके सहयोगियों और उनके पूरे परिवार का हृदयतल से आभार । खासकर उनके बेटे और नन्हे से भतीजे का। सुबह हिन्दुस्तान अखबार में कवि-सम्मेलन खबर के साथ अपनी फोटो भी थी इससे और खुशी हुई शायद बड़ो-बड़ो को छोड़कर अंगार भाई के साथ हमारी फोटो इसलिए थी पत्रकार भाई सोचे होंगे ये आगरा के पगलखाने से भागकर आयी है इसकी तो फोटो लगा ही दो😀
आते-आते अखण्ड भैया के पिताजी से भी जरा-सी बात हुई ..फोटो भले न ले पाए उनकी लेकिन साथ में लेकिन मिलकर बात करके एक हस्ती लगे। उनका चेहरा भी रोबीले होने की कहानी कह रहा था। सबसे अच्छी बात लगी कि समारोह के मंच पर वह अपने वास्तविक परम्परावादी लिबास में रहें। वैसे तो धोती को लोग पीछे खोंसकर पहनते हैं लेकिन उन्होंने धोती को नार्मल कहिए या हम कहे कि तमिल स्टाइल में पहन रखा था उन्होंने तो आप सब अच्छे से समझ पाएंगे आप सब |
लौटने में भारत बंद आह्वान के कारण तनिक समस्या आयी हमें भदौरा के बजाय बक्सर से ट्रेन पकड़नी पड़ी लेकिन ओमप्रकाश क्षत्रिय भैया का साथ था अतः चिंतामुक्त थे । कुलमिलाकर 10 सितम्बर 11 बजे गहमर से निकलकर 11 सितम्बर की सुबह 8 बजे अपने घर को आ गए। ट्रेन में भी वाराणसी से पंडित जनों का झुंड बैठा था शाम ढलते ढलते पता चला सब प्राचार्य हैं और साथ-साथ कवि भी।
ऐसे सहित्यक महाकुंभ से वापस आने के बाद अपने आप से कहना पड़ता है कि सविता कुछ बढ़िया से लिखना- पढ़ना सीख ले..ऐसे आयोजनों में तेरी स्थिति डांट खाने से पहले वाले कालिदास सरीखी न हो....चार दिन अपने को ऐसे ही समझाने हुए पाँचवे दिन फिर सब दिन जात एक समान हो जाता है...खैर जब तक हम जागे या न भी जागे , आप सब महाकुंभ में चमकते चेहरों को निहारिए...और पहचानिए😊😊...सविता मिश्रा 'अक्षजा'
7 सितम्बर रात 2:15 पर ट्रेन पकड़े और भदौरा स्टेशन पर पहुँचे रात 11:30 बजे के आसपास। वहाँ पर अखण्ड भाई मिले फिर बाइक से उनके घर की ओर। कुल मिलाकर पूरे 22 घण्टे में पहुँचे गहमर की भूमि पर। जैसे-जैसे ट्रेन खच्चर हो रही थी वैसे-वैसे दिमाग में एक अजीबोगरीब डर बैठ रहा था। क्योंकि गाँव तो गाँव ही होता है कितना भी नामी-गिरामी हो या फिर मशहूर लोगों का ही क्यों न हो। शहरों की तरह सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें तो नहीं ही मिलती ऊपर से सड़क खराब है! जाने से एक दिन पहले ही हम सुन चुके थे। खाना-पानी करके बिस्तर पर पड़े फिर अगले दिन सुबह छः बजे उठ गए। सुबह नाश्ता-पानी करके कार्यक्रम स्थल का जायजा लेने पहुँच गए जो कि सड़क पार करते ही स्थित था। वहाँ बच्चों को भाला फेंककर अभ्यास करते हुए देखना भी अच्छा लगा।
कार्यक्रम थोड़ा देर से शुरू हुआ लेकिन देर आए दुरुस्त आए वाली स्थिति थी। गर्मी से बेहाल हुए जा रहे थे लेकिन अच्छा लगा सबको सुनकर। यह भी महसूस हुआ कि ऐसे आयोजनों में जाने पर ज्यादा शिष्टाचार निभाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए सामने वाला आदमी आपको पीछे और पीछे करने के चक्कर में हो जाता है...खैर देखते हैं कि हम आयोजनों में अपनी भागीदारी करते हुए कब तक शिष्टाचार न छोड़ेने की कवायद कर पाते हैं।
लघुकथा वाचन में हमने अपनी लघुकथा भी पढ़ी। फिर शाम को कवि सम्मेलन में कविता पाठ भी किया। औरों को सुनकर अच्छा लगा सबसे अच्छा तब लगता है जब कई लोग बिना देखे ही कविता या कथा-कहानियां पढ़ लेते हैं, एक हम हैं कि मुंडी पेपर से उठती ही नहीं।
वाराणसी के स्कूल से आई लड़कियों ने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी। डांस, गायन में कजरी, स्वागत गीत सब मन को लुभाने ले लिए पर्याप्त थे। और असम प्रदेश का डांस के तो क्या कहने, बेहद अच्छी प्रस्तुति रही वहां ले लोक-नृत्य की भी।
सैनिकों के गांव में एक से बढ़कर एक न जाने कितने मोती दिखाई पड़े....कुछ मोती हमारे हाथ लगे कुछ छिटक गए..उन सब ज्ञानियों के बीच खुद को खड़ा देखकर अभूतपूर्व खुशी मिली जिसे शायद शब्दों में बयान नहीं कर सकते हैं...दो-चार-दस से मिलने का साहस भी नहीं जुटा पाए हम...। श्रवण भैया ने नाम लेकर कहा था कि मेरा दोस्त है वहाँ मिलेगा लेकिन उन्हें सामने पाकर सिर्फ अभिवादन करके रह गए | परिचय न दिए न बात ही कर पाए। सबसे बड़ी खुशी की बात यह भी रही कि अयोध्या से शास्त्री जी आए थे जिन्हें शासन द्वारा दो लाख का पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई है।
हमें इस बात का बड़ा अफसोस है कि एक बुजुर्ग शायद उसी गाँव की कोई प्रतिभा थी, वह कुछ सुनाना चाहते थे..हमसे 'माता जी' कहकर बोले थे अपनी बात लेकिन. जब तक हम उनकी बात समझते तब तक कोई उनसे कह चुका था कि कार्यक्रम समाप्त हो चुका कल आके सुनाना बाबा..कल यानी दूसरे दिन वह दिखे ही न...!
सुबह कार्यक्रम स्थल पर भी एक लड़का जो एयरफोर्स में जाना चाहता था और कवि सम्मेलन में भाग लेता रहता है जैसा कि उसने बताया, उसने अपनी तीन चार कविता सुनाई थी । काश ऐसे ही उन बुजुर्ग का मान रखते हुए हम उनसे भी सुन लेते, कुछ जो वो बोलना-गाना चाहते थे और मोबाइल में कैद कर लेते। इससे उनका मान भी रह जाता और हमें भी पछतावा न होता, खैर।
पहली बार कवि सम्मेलन में भाग लेने का सुअवसर मिला , संस्थाओं के आयोजनों में, संकलन के विमोचनों में और आगरा की साधिका समिति की बैठकों में कविता-पाठ करते रहे हैं पर ऐसे बड़े-बुजुर्गों-ज्ञानियों के बीच मंचासीन होकर कवि सम्मेलन का अनुभव पहली बार लिया..पहले से हमने अपना नाम भी नहीं दिया था लेकिन वहाँ रमेश तिवारी भैया ने पूछा फिर हमारा नाम लिख लिया । सच में बड़ा अजीब लगा । शायद पहली बार ऐसे मंच की जमीन पर बैठने के कारण लेकिन बहुत सुखद भी लगा और जब श्री सतीश राज पुष्करणा अंकल ने कहा कि बढ़िया कविता थी, तो हमारी प्रसन्नता की सीमा का अंदाजा भी कोई लगा नहीं सकता है...😊😊
लघुकथा वाचन-कवि -सम्मेलन और सम्मान पाकर अपार खुशी तो हुई ही, मेजबानों के आथित्य-सत्कार से भी मन गदगद हुआ😊
गर्मी से बड़े बेहाल भले हुए लेकिन गंगा मैया और कामाख्या देवी जी का दर्शन करके कलेजे को बड़ी ठंडक पहुँची।
दूसरे दिन सुबह गंगा मैया की सैर हुई बीना बुंदकी दीदी के सिवा किसी ने गंगा में डुबकी नहीं लगाई बस फोटो-शूट करने में लगे रहें। उसके बाद कामाख्या माँ के दर्शन करने पहुँचे सब..वहाँ भी मैया के दर्शन और फोटो-पे-फोटो लिए गए..कई जनों से उधर वार्ता भी हुई। फोटोग्राफर से ग्रुप फोटो निकलवाई गयी जिसे लगभग सबने ही लिया, वह भी खुश हो गया होगा। फिर वहाँ से लौटकर नाश्ता किया गया। नाश्ते में लीट्टी बनी थी जो की न जाने कितने साल बाद खाई हमने। वार्तालाप और नाश्ता करने के बाद कार्यक्रम स्थल का रुख किया गया।
सम्मान पाकर किसे नहीं खुशी होगी अतः हमें भी 'पंडित कपिल देव द्विवेदी स्मृति सम्मान' (समाज सेविका क्षेत्र में ) पाकर बहुत खुशी हो रही है...एक जन ने कहा था कि सविता तुम कब से सेविका बन गयी तो हमारा जवाब था कि हम भारतवासियों के मूल में ही सेवा भाव है । विरला ही ऐसा कोई भारतवासी होगा जो जो भारतीयता के इस गुण से वंचित होगा। कुल मिलाकर गहमर की धरती पर आकर अपार खुशी मिली, इस महाकुंभ में आकर गंगा जल की कुछ बूंदें अवश्य ही अपने दिमागी कमंडल में आ पहुँची होगी और हम भी साहित्य के पथरीली जमीन पर चलने की कोशिश कर पाएंगे।
एक दो मोती ऐसे भी दिखे जिनकी चमक हमें आकर्षित न कर सकी ...फिलहाल मोतियों की माला के एक-एक मोती जो हमारे मोबाइल की गैलरी में गूंथे हुए हैं उन सबको उनके नाम के साथ पहचानने की कवायद जारी है...😊
आयोजन में हमें 'कपिल देव शास्त्री सम्मान' से सम्मानित करने हेतु जजों की टीम और अखंड गहमरी का धन्यवाद- कविता पाठ और लघुकथा पाठ के लिए मंच प्रदान करने क लिए भी आभार 😊😊
चाक-चौबंद व्यवस्था के लिए अखण्ड गहमरी भैया और उनके परिवार की प्रशंसा तो करना बनता है उनके सहयोगियों और उनके पूरे परिवार का हृदयतल से आभार । खासकर उनके बेटे और नन्हे से भतीजे का। सुबह हिन्दुस्तान अखबार में कवि-सम्मेलन खबर के साथ अपनी फोटो भी थी इससे और खुशी हुई शायद बड़ो-बड़ो को छोड़कर अंगार भाई के साथ हमारी फोटो इसलिए थी पत्रकार भाई सोचे होंगे ये आगरा के पगलखाने से भागकर आयी है इसकी तो फोटो लगा ही दो😀
आते-आते अखण्ड भैया के पिताजी से भी जरा-सी बात हुई ..फोटो भले न ले पाए उनकी लेकिन साथ में लेकिन मिलकर बात करके एक हस्ती लगे। उनका चेहरा भी रोबीले होने की कहानी कह रहा था। सबसे अच्छी बात लगी कि समारोह के मंच पर वह अपने वास्तविक परम्परावादी लिबास में रहें। वैसे तो धोती को लोग पीछे खोंसकर पहनते हैं लेकिन उन्होंने धोती को नार्मल कहिए या हम कहे कि तमिल स्टाइल में पहन रखा था उन्होंने तो आप सब अच्छे से समझ पाएंगे आप सब |
लौटने में भारत बंद आह्वान के कारण तनिक समस्या आयी हमें भदौरा के बजाय बक्सर से ट्रेन पकड़नी पड़ी लेकिन ओमप्रकाश क्षत्रिय भैया का साथ था अतः चिंतामुक्त थे । कुलमिलाकर 10 सितम्बर 11 बजे गहमर से निकलकर 11 सितम्बर की सुबह 8 बजे अपने घर को आ गए। ट्रेन में भी वाराणसी से पंडित जनों का झुंड बैठा था शाम ढलते ढलते पता चला सब प्राचार्य हैं और साथ-साथ कवि भी।
ऐसे सहित्यक महाकुंभ से वापस आने के बाद अपने आप से कहना पड़ता है कि सविता कुछ बढ़िया से लिखना- पढ़ना सीख ले..ऐसे आयोजनों में तेरी स्थिति डांट खाने से पहले वाले कालिदास सरीखी न हो....चार दिन अपने को ऐसे ही समझाने हुए पाँचवे दिन फिर सब दिन जात एक समान हो जाता है...खैर जब तक हम जागे या न भी जागे , आप सब महाकुंभ में चमकते चेहरों को निहारिए...और पहचानिए😊😊...सविता मिश्रा 'अक्षजा'
6 comments:
बढ़िया लिखा है आपने। बधाई भारत की तस्वीर दिखाने के लिए।
छोटे में ही आपने सबकुछ समेट दिया है। जय हो। प्रणाम
सुंदर,सटीक और बहुत कुछ कहता संस्मरण के लिए हार्दिक बधाई सविता मिश्रा जी
आभार भैया आपका🙏😊
शुक्रिया बेटा...खुश रहें
आभार आपका...अपना नाम भी लिख देंते आप तो पहचान पाते हम😊
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