Monday, 4 February 2019

पारखी नज़र

"आज मेरा चाँद मुरझाया है, थक गयी हो क्या ?" ऑफिस से आते ही पत्नी को देख प्यार जताते हुए रमेश बोला |
"....."
"कहो तो माँ के लिए एक नर्स रख दूँ |"
"नहीं, नहीं ! माँ की सेवा करने में तो मुझे आनन्द आता है |"
"अच्छा जी, फिर क्या बात है ?"
"वह छोटी घर में लड़-झगड़कर अलग फ़्लैट में रहने लगी है ! आज दोपहर में फोन पर सारी बात बता रही थी | मन दुखी-सा हो गया सुनकर |"
"ओह, सूरत और सीरत में कितना फर्क होता है !"
"हु..!"
"लक्ष्मी ! आज तुम्हारे व्यवहार और सेवा भाव से मेरा बिखरा परिवार एक हो गया | लेकिन यह बताओ ! तुम और तुम्हारी बहन में जमीं-आसमां का फर्क कैसे है? वह भरे-पूरे परिवार में गयी थी, पर आज एक ही शहर में सब अलग-अलग रह रहे हैं | और वहीं तुम मेरे साथ रिश्तें में बंधी थी, परन्तु सब पर अपना जादू चलाकर पूरा बिखरा कुनबा जोड़ दिया तुमने | जो बड़ी भाभी पिछले पाँच सालों से जब से लड़कर गयी थीं, पलट कर नहीं आयी थीं | उन्हें भी तुमने इस परिवार में दूध-पानी-सा कर दिया | मेरी सब बहनें भी मिलने-जुलने आने लग गयीं | क्या कोई जादूगरनी हो क्या ?"
बोलता जा रहा था वह अपनी ही रौ में | पत्नी के मुख से एक भी शब्द न सुनकर उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला - "सुन रही हो मेरी जान..या..!" 
 एक आडियो गूँजा -
" ‘अपनी शक्ल देखी है आईने में!
‘क्यों ? मेरी शक्ल को क्या हुआ ! अच्छी भली तो हूँ |
'मेरी किस्मत खराब थी जो तू मुझे मिली, उस लंगूर को तेरी बहन | जो कितनी खूबसूरत है, काश वह मुझे मिल जाती, तो मेरी जिन्दगी संवर जाती '|"
"भूल जाओ न मेरी रानी, वह पुरानी बात |"
"क्या करूँ ! तुम प्रेम में बहुत बीमार हो जाते हो तो यह कड़वी डोज देनी पड़ती है मुझे |" कहकर खिलखिला पड़ी लक्ष्मी |
"वह मेरी नादानी थी | मैं उसके शारीरिक सुन्दरता पर मुग्ध हो उठा था | तुम्हारी आँतरिक सुन्दरता तो माँ ने देखा, तभी तो तुम्हें इस घर की बहू बनाकर वह ले आयीं |"
"हाँ, तुमने तो मुझे ठुकरा ही दिया था | माँ के कारण ही तो आज मैं तुम्हारे दिल पर राज कर रही हूँ !" बोलकर मुस्काते हुए वह चल दी माँ के कमरे की ओर |
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सविता मिश्रा 'अक्षजा'
3 January 2017

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