Friday, 19 April 2019

'यक्ष प्रश्न' लघुकथा की रचना प्रक्रिया

 
यक्ष प्रश्न 
सविता मिश्रा 'अक्षजा'

"दिख रही है न! चाँद-सितारों की खूबसूरत दुनिया?" अदिति को टेलिस्कोप से आसमान दिखाते हुए शिक्षक ने पूछा।
"जी सर! ढेर सारे तारे टिमटिमाते हुए दिख रहे हैं।"
"ध्यान से देखो! जो सात ग्रह पास-पास हैं, वो 'सप्त ऋषि' हैं! और जो सबसे अधिक चमकदार तारा उत्तर में है, वह है 'ध्रुव-तारा'।”
“जिनकी कहानी माँ सुनाया करती हैं!”
“हाँ वे ही, राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव! जिन्होंने अपने अपमान का बदला कठोर तप करके सर्वोच्च स्थान को पाकर लिया |"
"सर! हम अपने निरादर का बदला कब ले पाएंगे? हर क्षेत्र में दबदबा कायम कर चुके हैं, फिर भी ध्रुव क्यों नहीं बन पाए अब तक?" अदिति अपना झुका हुआ सिर उठाते हुए पूछा।
शिक्षक का गर्व से उठा सिर अप्रत्याशित सवाल सुन करके झुक-सा गया।
17/4/2015
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
 आगरा (प्रयागराज)  
 2012.savita.mishra@gmail.com  
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रचना प्रक्रिया 

एक फेसबुक ग्रुप में 'चित्र प्रतियोगिता' आयोजित की  गयी थी |  वहां दिए गए चित्र में  एक आदमी एक बच्ची को  से टेलिस्कोप कुछ दिखाने का प्रयास कर रहा  था | उसी  चित्र  को  देखकर चेतन  मन लघुकथा हेतु कथानक चुनने लगा |  अचानक  से  17 April 2015 को उस चित्र को देखकर हमारे दिमाग में ध्रुव तारा आया | जिसके साथ उस विषय में दादी-नानी द्वारा बताई गयी पौराणिक कहानी भी याद आई |  दिमाग में क्लिक हुआ कि लड़कियों के महती कार्य को कहकर हम उनकी होती उपेक्षा और निरादर दिखा सकते हैं | बस फिर क्या था कम्प्यूटर के किबोर्ड पर उँगलियाँ थिरकने लगीं | और अवचेतन मन में छुपा लडकियों के प्रति होता निरादर  'निरादर का बदला' नामक लघुकथा रूप में स्क्रीन पर उतरता गया |
कथोपकथन शैली को अपनाकर अपनी बात को कहना ज्यादा सरल था | जिसके कारण हमने इसी शैली को अपनाते हुए ही अपने अन्तर्द्वन्द को शब्दों में गढ़ा |
पहले ही ड्राफ्ट के साथ यह लघुकथा दो-तीन जगह छपी, जिसमें साहित्य शिल्पी वेबसाइट महत्वपूर्ण है | बाद में २०१८ में मेल में भेजते समय दिमाग ने कहा कि 'निरादर का बदला' से ज्यादा ‘यक्ष प्रश्न’ नामक शीर्षक मेरे विचारों को गति दे रहा है | इस बात के दिमाग में कौंधते ही हमने इसके शीर्षक में बदलाव कर दिया | क्योंकि लगा कि लड़कियों को उनका सम्मान कब मिलना, पूछना एक ‘यक्ष प्रश्न’ ही है, जिसका जवाब न अब तक मिला है और न ही शायद आगे भी कभी मिलेगा | साथ ही हमने इसके  वाक्य-विन्यास और अशुद्धियों को सही  किया | यानी की दूसरे ड्राफ्ट में ही यह  कथा वर्तमान स्वरूप  को प्राप्त  हुई |
 इसको सही करने या शीर्षक बदलने में  हमने  किसी की भी सलाह का सहारा नहीं लिया  |
आज २९/१०/२०२० को वाक्यविन्यास में थोड़ा परिवर्तन किया |
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