Sunday 16 December 2012

~~सपनों का क्या कसूर ~~


हवा का एक झोंका आया
मेरे सपने बिखर गये
फिर से उनको ढूँढ कर
जोड़ना मुश्किल हो रहा है।

मेरे सपने क्या थे
यह भी मुझे याद नहीं
मैं इस भीड़ भरी दुनिया में
उन्हें किधर खोजूं ?

हे ऊँचे महलों में रहने वालो
देखो हो सकता है कहीं
मेरे सपने उड़कर
आपके चरणों में दब कर
रह गये होंगे।
वे कहीं आपके महल के
एक कोने में सिसकियाँ
ले रहे होंगे।

मेरे सपने मुझे लौटा दो
इनका कोई कसूर नहीं
कसूर तो मेरा था
कि मैंने इतने ऊँचे
सपने देखे ही क्यों ?

आप मुझे मेरे सपने
लौटा दो
फिर कभी भी यह
भूल ना होंगी
मैं अपने सपने को
सपना ही बना रहने दूंगी।

उन्हें असलियत में बदल कर
मैं अपने सपनों का खून
फिर कभी नहीं करुँगी || सविता मिश्रा

. ||सविता मिश्रा|| ३/१२/८९

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