Sunday 22 May 2022

समीक्षक अशोक अश्रु

वरिष्ठों का आशीष मिलता रहे यूँ ही और क्या चाहिए

😊😊😊
आप सब भी पढ़िए हो सके तो---👇👇
समीक्षा : 'रोशनी के अंकुर '
लेखिका: सविता मिश्रा 'अक्षजा'
मैं आप से बात कर रहा हूँ लेखिका श्रीमती सविता मिश्रा 'अक्षजा' की पुस्तक 'रोशनी के अंकुर' लघुकथा संग्रह की जो निखिल पब्लिसर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स आगरा से प्रकाशित हुआ है। जब हम इस संग्रह के आवरण पृष्ठ को देखते हैं तो आवरण पृष्ठ की धरा पर एक प्रकाश पुंज दृष्टिगोचर होता है ।जो कहीं न कहीं अंकुर से ही प्रस्फुटित हुआ है जो कह रहा है कि समग्र सृष्टि का बीज रूप अंकुर ही है तथा जहाँ से प्रकृति का उद्गम हुआ है। आवरण के पृष्ठ भाग पर लेखिका का परिचय है। जब मैं उनका परिचय पढ़ रहा था या यूँ कहूँ कि मैंने अनुभव किया कि वह जो हैं वही दीखना चाहती हैं। किसी तरह का कोई आडम्बर नहीं। अधिकाधिक महिला लेखिकाएँ अपने जन्म का वर्ष नहीं लिखतीं पर यहाँ ऐसा नहीं है। परिचय मैं उन्होंने अपने माता-पिता, पति एवं बच्चों का जिक्र किया है। जब मैंने पुस्तक खोली तो यह पुस्तक उन्होंने अपने स्वर्गीय सास-ससुर को समर्पित की है। मेरे कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि वह अपने परिवार अपने रिश्तों के प्रति निष्ठावान हैँ तथा संस्कारों के प्रति सजग हैं।
आज का पाठक बड़े बड़े उपन्यासों एवं कहानियों की तुलना में लघुकथाओं की ओर अधिक आकर्षित है। कारण स्पष्ट है कि आज की भागमभाग जिंदगी में उसके पास समय कम है।वह कम समय में अधिक से अधिक मनोरंजन चाहता है वहाँ लघुकथाएं अपना स्थान बनाने में सफल रही हैं। पद्य में जिस प्रकार दोहा या शेर को दो पंक्तियों में बड़ी से बड़ी बात कहने की महारथ प्राप्त है उसी प्रकार लघुकथा को गद्य में वही स्थान प्राप्त है। ये कुछ क्षणों में पाठक की हमराही बन जाती हैं। यह भी कहा जा सकता है कि लघुकथाएं कुछ शब्दों में ही अपनी भाव प्रवीणता के कारण पाठक के मन को गुदगुदाने लगतीं हैं तथा कुछ समय में ही पाठक की पाठन क्षुधा को तृप्त कर देतीं हैं।
'रोशनी के अंकुर' एक सौ एक मोतियों की माला है।जिसके हर मोती में आब है तथा हर मोती की महत्ता है। ये एक सौ एक लघुकथाएं संग्रह के एक सौ अड़तीस पृष्ठों में हैं अर्थात अधिकाधिक कथाएं एक पृष्ठ के अंदर ही पूर्ण हो गई हैं। इस प्रकार ये लघुकथाएं वास्तव में लघु रूप में हैं। लघुकथाओं के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाएं दी हैं।मेरा मानना तो यही है जो कि जो लघुकथा पाठक मन को झंकृत करदे या जो कथाकार कह रहा है वह मानव मन की गहराइयों में उतर कर अपना घर बनाले वही कथा श्रेष्ठ है। लेखिका ने इस सन्दर्भ में बहुत ही सच्चाई से श्रम किया है। उनकी अधिकतर लघुकथाएं भावनात्मक और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। जो रोजमर्रा के जीवन में घटने वाली घटनाओं को अपने अंदर समेटे हुए हैं। इसीलिए पाठक को लघुकथाओं के चरित्र अपने आसपास के ही महसूस होते हैं। जिसके कारण वह उनसे शीघ्र तारतम्य स्थापित कर लेता है। यही अक्षजाजी के इस लघुकथा संग्रह का विशेष गुण है।
जिस प्रकार पारखी के माध्यम से कुछ दानों से ही बोरी में भरे अनाज के गुणों की पहचान करली जाती है। उसी प्रकार मैं भी 'रोशनी के अंकुर' संग्रह की कुछ लघुकथाओं का जिक्र करूंगा। उनकी लघुकथा 'कागज का टुकड़ा' दाम्पत्य जीवन के खट्टे-मीठे प्रसंगों को लेकर लिखी गई है। इस लघुकथा के माध्यम से लेखिका यह संदेश देने में पूरी तरह सफल रही हैं कि कभी-कभी जो आँखें देखती हैं वह सत्य नहीं होता। इसलिए मन की आँखें खोलकर देखना और समझना परमावश्यक है। इसी प्रकार लघुकथा 'तुरपाई' में लेखिका यह संदेश देने में पूर्णतः सफल रही हैं कि बेटी का घर बनाने में बेटी की मां का बहुत बड़ा योग रहता है। इस कथा में मां अपनी बेटी को एक दृष्टांत के माध्यम से उचित सीख देकर उसे उसकी ससुराल वापिस भेज देती है। जिससे बेटी का घर बिगड़ने से बच जाता है। जब मैं इस संग्रह की लघुकथा 'अभिलाषा' पढ़ रहा था। उस समय मेरे मन में अयोध्या सिंह उपाध्याय'हरिऔध' की कविता 'एक बूंद' घुमड़ने लगी। जिसमें एक बूंद बादलों से निकल कर आगे बढती है तो स्वयं से प्रश्न करने लगती है। "हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढी ।" इसी प्रकार अभिलाषा लघुकथा में टूटी हुई चूडियां भट्टी में पुनः तपने जाने से पूर्व आपस में चिंतन करने लगती हैं कि भविष्य में हमारा क्या होगा। पता नहीं हम किसके हाथ की चूड़ियाँ बनेंगे। लघुकथा 'मन का बोझ' के माध्यम से लेखिका ने समाज को यह सीख दी है कि कभी कभी हम रास्ते में हुए एक्सीडेंट को देखकर भी उसे अनदेखा करके आगे बढ जाते हैं।जबकि हमारा धर्म एवं कर्तव्य यह होना चाहिए कि हम उसके प्राथमिक उपचार की व्यवस्था करें तथा पुलिस को सूचित करें।इस कथा का पात्र दुर्घटना देखकर भी बिना रुके चला जाता है। बाद में उसे मालूम पड़ता है कि उसी के पुत्र का एक्सीडेंट हुआ था यदि तुरत उपचार मिल जाता तो शायद उसके प्राण बच जाते। मैं इस संग्रह की लघुकथा 'सच्ची सुहागन' पर कुछ न कहूँ तो मेरी बात अधूरी रह जाएगी। यह लघुकथा एक गरीब परिवार की व्यथा कथा है। इस लघुकथा के द्वारा लेखिका ने बहुत ही मार्मिक ढंग से इस तथ्य को उजागर किया है कि एक गरीब परिवार की अभिलाषाओं और इच्छाओं का आर्थिक विपन्नता के कारण किस प्रकार गला घुटता है। मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि इस संग्रह की अधिकाधिक लघुकथाएं संदेशपरक एवं सकारात्मक सोच के साथ साथ समाज का नग्न चित्रण करने से भी नहीं चूकी हैं। इसी प्रकार लेखिका ने 'इज्ज़त' 'समय का फेर' 'वर्दी' 'बिन मुखौटे के' 'आत्मसम्मान' 'देश' 'बेटी' 'नशा' 'इतिहास दोहराता है' 'रौशनी' 'भाग्य का लिखा' आदि लघुकथाएं समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करती हुई दीखतीं हैं।
सविता मिश्राजी ने समाज में घटने वाली घटनाओं के हृदय पटल पर बनने वाले बिम्बों के मंथन से निकले नवनीत को ही अपनी लघुकथाओं की विषय वस्तु बनाया है।जो यथार्थ के करीब हैं और उद्देश्यपरक हैं।उन्होंने अपने आसपास जो देखा है और अनुभव किया है उसी का सार 'रोशनी के अंकुर' के रूप में हमारे सामने है।आप संस्कारों के प्रति जिद्दी हैं इसकी झलक भी उनकी लघुकथाओं में मिलती है। सरल भाषा में आपको बड़ी से बड़ी बात कहने की महारथ प्राप्त है। आपका जन्म इलाहाबाद में हुआ है और वहीँ आप पढ़ी- बढ़ी हैं इसलिए वहाँ की मिट्टी की सुगंध आपकी भाषा में घुलमिल गई है जिससे आपकी भाषा शैली में मिठास बढ़ गया है।
इस संग्रह की एक दो लघुकथाओं को छोड़ दें तो यह एक सशक्त लघुकथा संग्रह है। ईश्वर करे कि 'अक्षजाजी' की लेखिनी इसी खूबसूरती के साथ सक्रिय रहे। भविष्य में शीघ्र और भी उनकी पुस्तकें देखने को मिलें। ऐसी रचनाएँ साहित्य की निधि होती हैं, जो साहित्य को सही अर्थों में 'साहित्य' होने का गौरव प्रदान करती हैं।
समीक्षक
अशोक अश्रु
सम्पादक: संस्थान संगम मासिक पत्रिका, आगरा ।
मो.9870986273

No comments: