Sunday 22 May 2022

सार गर्भित टिप्पणी - व्यंग्यकार , अरविन्द तिवारी “#रोशनी_के_अंकुर”

 सविता मिश्रा अक्षजा का यह लघुकथा संग्रह "रोशनी के अंकुर"कई माह पूर्व डाक से मिला था,लेकिन लॉक डॉउन में किताबों के बीच गुम हो गया।सविता मिश्रा के बार बार पूछने पर मैं कह देता था , मिला ही नहीं।किताबों को कई तरह से हम रखते हैं।नई आई किताबें और पत्रिकाएं ऊपर लॉबी में पड़े तख्त पर रखी जाती हैं।इनमें से जिन पुस्तकों को अच्छी तरह देख या पढ़ लेता हूं, वे अंदर कमरे में नई पुस्तकों की रैक में स्थान पाती हैं। कोई पुस्तक गुम होने पर लगभग पांच सौ पुस्तकों को उलटना श्रमसाध्य कार्य होता है।खैर यह किताब मिल गई।इसमें 101 लघुकथाएं हैं।कुछ मैंने पढ़ी हैं।पढ़ी गई में से कुछ बहुत अच्छी लगीं।बाकी विस्तार से लिखना अभी संभव नहीं है।

सत्तर के दशक से लिखी जा रहीं लघुकथाएं अब मुख्य विधा बनती जा रही है।मुझे याद है जब दशकों पहले हमने राजस्थान तटस्थ रचनाकार संघ की स्थापना की थी तो राजस्थान मूल के डॉ सतीश राज पुष्करणा जो बिहार में रहते हैं,को भी जोड़ा था। डॉ रामकुमार घोटड़ तो थे ही। आज मेरे ये दोनों मित्र लघुकथा में स्थापित हस्ताक्षर हैं।
आज फेसबुक के ज़रिए खूब लघुकथाएं लिखी जा रही हैं।जाहिर है सभी मानदंडों पर खरी नहीं उतरती हैं।इतना ज़रूर है कि प्रकाशकों ने एक दशक में खूब किताबें प्रकाशित की हैं।मेरी मान्यता है कि लघुकथा के संक्षिप्त कथानक में चरमोत्कर्ष महत्वपूर्ण होता है। यह जितना अप्रत्याशित होता है,लघुकथा उतनी ही महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रसंग वक्रता लघुकथा का आभूषण है। पर मेरी राय में व्यंग्य की तरह पंच का आना जरूरी नहीं है।लघुकथा अतिरिक्त संवेदना के धरातल पर लिखी जाती है। https://www.amazon.in/dp/B0826N58ZV/ref=cm_sw_r_wa_apa_i_fu57Eb3X6SQKZ

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