Sunday 22 May 2022

प्रतिक्रिया- ज्योत्स्ना कपिल

 Savita Mishra उन चर्चित रचनाकारों में से हैं जो प्रत्येक विधा में प्रयास करते हैं और उसमें अपनी चमक भी दिखाते हैं। फिर चाहे वह लघुकथा हो, कहानी हो, व्यंग्य हो, समीक्षा हो अथवा बाल साहित्य। हर जगह वह प्रयत्नशील एवम संभावनाशील नज़र आयी हैं। पिछले दिनों आया उनका लघुकथा संग्रह ' रोशनी के अंकुर ' पर्याप्त चर्चा में रह है। यह संग्रह आगरा के निखिल पब्लिशर्स एवं डिस्ट्रीब्यूटर के द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसमें उनकी 101 लघुकथाएं संग्रहित हैं। सविता जी ने अनुमानतः 2014 से लघुकथा लेखन प्रारम्भ किया है और उनका कहना है कि साढ़े तीन सौ अधिक लघुकथाएं लिख चुकी हैं।

इस संग्रह की एक भूमिका वरिष्ठ लघुकथाकार अशोक भाटिया जी ने लिखी है तथा दूसरी प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्रवण कुमार उर्मलिया जी ने लिखी है। भाटिया जी कहते हैं कि सविता जी ने पारिवारिक धरातल के साथ साथ सामाजिक एवम राजनैतिक विद्रूप पर भी कलम चलाई है। दूसरी ओर उर्मलिया जी ने उन्हें साहित्यिक परिवेश में उभरती एक सम्भावना बताया है। उनकी कलम ज्योतिष, पाप पुण्य, शुभ अशुभ, राहु केतु आदि व्यर्थ की मान्यताओं को खारिज करती है। वह अंधविश्वास से परे एक स्वस्थ दृष्टिकोण वाले समाज की स्थापना करना चाहती हैं।
सविता जी की पहली कथा ' माँ अनपढ़ ' वर्तमान के बच्चों द्वारा अपनी माँ को अज्ञानी समझे जाने का चित्रण है। ' मात से शह ' में पुरुष द्वारा साँवले रंग के कारण उपेक्षित स्त्री है। जहाँ स्त्री की सफलता देखने के बाद ही पुरुष को अपनी गलती का अहसास होता है। ' इज्जत ' में एक कुटिल माँ द्वारा अपने नामर्द बेटे के विवाह के लिए जाल में फंसाई गई स्त्री है। ' आहट ' में पुत्री की चिंता से भयाक्रांत पिता है। ' तुरपाई ' में माँ द्वारा बेटी की गृहस्थी को तुरपाई के प्रतीक द्वारा सँवारने की सीख है। इसी प्रकार हाथी के दाँत , आस, ठंडा लहु, नज़र, परिवर्तन आदि सोचने को मजबूर करती लघुकथाएं हैं।
सविता जी की अविराम चलती कलम से यह अपेक्षा की जा सकती है कि उनमे काफी संभावनाएं हैं। मैं सविता जी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ।
लघुकथा संग्रह - रोशनी के अंकुर
लेखिका - सविता मिश्रा
प्रकाशक - निखिल पब्लिशर्स
पृष्ठ - 152
मूल्य - ₹ 300/-

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